मेंदाता में ली अंतिम सांस
मंगलवार को बीकानेर में होगा अंतिम संस्कार ।
अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किए जाने की उठी मांग।
बीकानेर, 11 अक्टूबर । रक्षा अनुसंधान एवम विकास संग़ठन ( डी आर डी ओ ) के पूर्व निदेशक, वैज्ञानिक, इंजीनियरिंग कॉलेज बीकानेर के पूर्व प्रिंसिपल, बीकानेर तकनीकी विश्वविद्यालय के प्रथम वाईस चांसलर, पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की डिफेंस रिसर्च में अवार्डेड एवं पूर्व राष्ट्रपति मिसाइल मेन डॉ अब्दुल कलाम के साथी डॉ हनुमान प्रसाद व्यास का देहावसान सोमवार तड़के 5:30 बजे मेदांता हॉस्पिटल गुरुग्राम मे हो गया। उनकी अंतिम यात्रा 12 अक्टूबर को प्रातः 9:30 बजे उनके निवास स्थान 3 B 5 जय नारायण व्यास नगर से रवाना होकर शिव बाडी मुक्तिधाम जाएगी। ज्ञात रहे कि डॉ व्यास पिछले लंबे समय से अस्वस्थ थे तथा कैंसर जैसी घातक बीमारी से जूझ रहे थे। उन्हें बीकानेर के पी बी एम चिकित्सालय से 26 सितंबर को एयरलिफ्ट से दिल्ली एनसीआर की मेदांता ले जाया गया था।
इन नेताओं ने जताया शोक, बताया अपूरणीय क्षति ।
व्यास के निधन पर केंद्रीय राज्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल, ऊर्जा मंत्री डॉ बीडी कल्ला, उच्च शिक्षा मंत्री भंवर सिंह भाटी प्राईवेट एज्यूकेशनल इंस्टीट्यूट्स प्रोसपैरिटी एलायंस ( पैपा) के प्रदेश समन्वयक गिरिराज खैरीवाल सहित बीकानेर के राजनीतिक, सामाजिक और शैक्षिक जगत ने शोक व्यक्त करते हुए इसे एक बहुत बड़ी कभी पूरी नहीं होने वाली क्षति बताया है।
डॉ व्यास को पूर्व राष्ट्रपति मिसाइल मेन डॉ कलाम ने विशेष तौर पर डी आर डी ओ में नियुक्त किया
डॉ. हनुमान प्रसाद व्यास ने भारत में रक्षा संबंधी सर्वोच्च संस्थान भारतीय रक्षा अनुसंधान केन्द्र में निदेशक के पद पर अपनी सेवाएं दी। उन्होंने इस पद पर रहते हुए देश के सुप्रसिद वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से प्रोत्साहित होकर सिलिकॉन आधारित सेमीकंडक्टर तकनीक पर सफलतापूर्वक कार्य किया। डॉ. व्यास के परिश्रम स्वरूप इस तकनीक से सेमीकंडक्टर भारत में ही निर्माण होने लगे तथा विदेशों पर आश्रित भारत अब स्वयं इसका उत्पादन करने लगा, जो कि इलेक्ट्रोनिक एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बहुत बड़ा कार्य सिद्ध हुआ। इस माइक्रोवेव सेमीकंडक्टर उपकरणों का उपयोग इंटरनेट, संचार माध्यम रडार तथा अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले उपग्रहों में किया जाता है। डा व्यास को फादर आफ माईक्रोवेव आईसी कहा जाता है। डा व्यास अमेरिका में सेवारत थे जिन्हें पूर्व राष्ट्रपति डॉ कलाम ने विशेष तौर पर डी आर डी ओ में काम करने के लिए नियुक्त किया था। लगभग 10 वर्ष तक डा व्यास ने मिसाइल मेन के साथ डी आर डी ओ में कार्य किया था।
बीकानेर तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति और ईसीबी के प्राचार्य भी रहे डॉ व्यास
डी आर डी ओ से रिटायर होने के बाद डॉ व्यास ने बीकानेर के इंजीनियरिंग कॉलेज में बतौर प्राचार्य अपनी सेवाएं दीं। उन्हें बीकानेर तकनीकी विश्वविद्यालय का प्रथम कुलपति भी नियुक्त किया गया था। बीकानेर तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर रहते हुए डॉ व्यास ने डेयरी रिन्यूबल एनर्जी जिसमें सोलर, बायोगैस और सिरेमिक के लिए तकनीक विकसित करने पर काम अत्यंत ही उल्लेखनीय कार्य किया।
लर्निंग बाई डूंईंग कांसेप्ट के अंतर्गत यूथ टीम बनाई और बच्चों को किया प्रशिक्षित
उन्होंने बीकानेर में लर्निंग बाई डूंईंग कांसेप्ट पर कार्य करना आरम्भ किया। डॉ. व्यास का मानना था कि विज्ञान को हम रट नहीं सकते। हमें विज्ञान के प्रायोगिक ज्ञान को समझगा होगा। उन्होंने बीकानेर तथा आस-पास के कस्बों व गांवों तक अनेक स्थानों के अनगिनत विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में विज्ञान के प्रयोगों का प्रायोगिक प्रशिक्षण दिया। यह प्रशिक्षण रचनात्मक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बहुत ही व्यवहारिक, सार्थक और अनुकरणीय सिद्ध हुए। डॉ. व्यास इतने उच्च स्तर के वैज्ञानिक होने के बाद भी छोटे-छोटे बच्चों को अपने हाथ से विज्ञान के जटिल विषयों को प्रयोगों द्वारा बहुत ही सरल एवं सहजता से बतलाते थे। जिसको बच्चे देखकर बहुत ही आनन्दित होते थे। इस कांसेप्ट के तहत वे इंजीनियरिंग करने वाले छात्रों की विशेष कार्यशालाओं का आयोजन करते, जिनमें उनको कम्प्यूटर तथा फीजिक्स के द्वारा रॉबोट, हेलिकॉप्टर तथा इसी प्रकार के अन्य प्रोजेक्ट पर काम करना सिखाते। यह कार्य विद्यार्थी अपने हाथों से करते थे तो उनको बहुत कुछ सीखने का अवसर मिलता। लर्निंग बाई डूइंग कांसेप्ट के तहत बीकानेर के कई विद्यालयों में वैज्ञानिक वातावरण का निर्माण हुआ हजारों छात्र – छात्राओं ने उनके प्रयोगों को देखकर विज्ञान में अपनी रूचि देखाई तथा विज्ञान को नए तरीके से समझा।
अनेक पुरस्कारों व सम्मान की उपलब्धियों से विभूषित थे डॉ व्यास
डा. व्यास ने इलेक्ट्रॉनिक्स में इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की और बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस, पिलानी, भारत से क्रमशः 1969 और 1971 में एम.ई. और पीएच.डी. रेंससेलर पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट (आरपीआई), ट्रॉय, एनवाई से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की। 1979 में, उन्होंने यू.एस. सेमीकंडक्टर उद्योग के साथ १6 वर्षों तक काम किया है। वे जनवरी 1995 से सॉलिड स्टेट फिजिक्स लेबोरेटरी (एस एस पी एल), दिल्ली में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में नियुक्त हुए। वे माइक्रोवेव मोनोलिथिक इंटीग्रेटेड सर्किट (एम एम आई सी) तकनीक के विकास और निर्माण से जुड़े हुए हैं। भारतीय और विदेशी पत्रिकाओं में उनके 30 प्रकाशन हैं। डॉ व्यास को डीआरडीओ में 12-गीगाहर्ट्ज एमएमआईसी प्रौद्योगिकी के विकास और स्थापना के लिए प्रतिष्ठित पाथ-ब्रेकिंग रिसर्च अवार्ड से सम्मानित किया गया। उन्हें भारत और अमेरिका में उनके सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी कार्य के लिए सात पुरस्कार दिए गए हैं। जिसमें 1.0- माइक्रोन द्विध्रुवी प्रौद्योगिकी के विकास के लिए “उत्कृष्ट उपलब्धि पुरस्कार” और हनीवेल में रहते हुए सबमाइक्रोमीटर सीएमओएस प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए मंडल तकनीकी पुरस्कार शामिल हैं। सी एम ओ एस वी एल एस आई निर्माण के विभिन्न पहलुओं के लिए चार अलग-अलग “उत्कृष्ट टीमवर्क अवार्ड” उन्हें मिले थे।
गीता में जीवन दर्शन है… डॉ व्यास
बेहतरीन दार्शनिक के तौर पर डॉ व्यास ने कहा कि ” देश बदलना है तो बच्चों के साथ काम करो।” “बदलाव लाने के लिए अधिकार जरूरी है।” ” परिवर्तन के लिए लम्बी लड़ाई पड़ती है और यह सतत् चलते रहना चाहिए।”
एक वैज्ञानिक होते हुए भी धर्म में अगाध आस्था रखने वाले डा व्यास ने गीता का भी मुखर प्रचार प्रसार किया। स्वामी विवेकानंद जी से प्रभावित डॉ व्यास कहते थे कि “गीता पढ़ने की किताब नहीं, जीवन जीने का दर्शन है। उन्होंने गीता और स्वामी विवेकानंद के आदर्शों को प्रचारित करने के लिए हजारों की संख्या में बच्चों को प्रशिक्षित किया तथा
कहते थे कि ” स्वामी विवेकानंद जी ने जो राह दिखाई उसे लगातार आगे जारी रखना है।” महर्षि अरविंद से भी डॉ व्यास अत्यन्त ही प्रभावित थे तथा अरविंद सोसाइटी बीकानेर के मुखिया थे।
डॉ व्यास के पिता और पुत्र भी उच्च शिक्षित
बीकानेर के परकोटे के भीतर रहने वाले शिक्षाविद् माधोदास व्यास के पुत्र डॉ व्यास का विवाह 1971 में अजमेर की सावित्री रंगा के साथ हुआ। उनके एक पुत्र सुधांशु हैं जो बायोटेक में डाक्टरेट है और यू एस में प्राईवेट कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत हैं।
अन्तिम संस्कार हो राजकीय सम्मान के साथ…
डॉ व्यास ने देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण काम किया था, इसलिए उनके अंतिम संस्कार को राजकीय सम्मान के साथ करने की मांग शिक्षाविद् गिरिराज खैरीवाल और समाजसेवी लक्ष्मण मोदी ने की है। इस हेतु राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन को तुरंत ही घोषणा कर इस संबंध में कार्यवाही करनी चाहिए।