रियासत काल से मना रहे है बंगाली दुर्गा पूजा महोत्सव,
दो दशक से विभिन्न मोहल्लों व चैकों में दुर्गा पूजा
बीकानेर, 13 अक्टूबर। बंगाली समुदाय का शक्ति स्वरूपा दुर्गा पूजा महोत्सव पश्चिमी बंगाल व राजस्थानी की देवी की पूजा व साधना-आराधना व भक्ति और बंग और मरु प्रदेश संस्कृृति, सद्भावना और सद्कर्म का प्रतीक है । बीकानेर सहित राजस्थान के विभिन्न इलाकों में बंगाली समुदाय की ओर से आयोजित दुर्गा पूजा महोत्सव में बंगाली बांग्ला में तथा राजस्थानी प्रदेश की विभिन्न बोलियों में जयकारा लगा कर देवी के प्रति आस्था व विश्वास प्रकट करते है।
विश्व विख्यात चूहों वाली देवी करणीमाता के मंदिर के कारण शक्ति पीठ के रूप् में पहचाने जाने वाले बीकानेर में दुर्गा पूजा महोत्सव मनाने की परम्परा रियासत काल से चल रही है। पिछले तीन दशक से दुर्गा पूजा महोत्सव बड़े पैमाने पर शहर के परकोटे के अंदर अनेक चैकों व मोहल्लों में भक्ति भावना के साथ आयोजित किए जा रहे है। पूर्व वर्षों तक रानी बाजार के बंगाली मंदिर (दुर्गाबाड़ी) में बंग संस्कृृति के अनुसार मनाया जाता था। फिर श्रमिक वर्ग ने औद्योगिक क्षेत्र रानी बाजार, बीछवाल, एयर फोर्स एरिया, आर्मी एरिया, गंगाशहर व नाल आदि स्थानों पर और शहर के अनेक मोहल्लों में नवरात्रा के दौरान दुर्गा पूजा महोत्सव मनाना शुरू कर दिया।
तरीका भिन्न आस्था व विश्वास एकसा
बंगाली समुदाय व शहर के चैक व मोेहल्लों में मनाएं जाने वाले दुर्गा पूजा महोत्सव में पूजा,अर्चना के तरीके भिन्न है लेकिन आस्था व विश्वास एक जैसा है। दुर्गा पूजा महोत्सव पंड़ालों में मंत्र दुर्गा सप्तशती, चंडी पाठ सहित विभिन्न देवी अनुष्ठानों के रहते है। बंगाली पंडित बांग्ला मिश्रित तथा स्थानीय पंडित हिन्दी, राजस्थानी से प्रभावित संस्कृत के मंत्रों से देवी की पूजा-अर्चना व स्तुति करते है। बंगाली समुदाय दुर्गा पूजा के साथ दीपावली पर काली पूजा, वसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा की परम्परा का निर्वहन अपनी भाषा व संस्कृति के अनुसार व स्थानीय नागरिक अपनी पुरातन परम्परा से पूजा करते हैं।
रोचक है बंगाली मंदिर का इतिहास
बीकानेर में बंग समाज का कोई मंदिर नहीं होने के कारण एम.ई.एस., गंगाशहर रोड व आसपास के क्षेत्रों में जगह किराए पर लेकर खुली जगहों पर दुर्गा पूजा महोत्सव होते थे। बंगाली समाज के डाॅ.जी.के.मुखर्जी ने बंगाली मंदिर के लिए अपनी निजी भूमि 30 गुणा 60 गज समर्पित की, जहां समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के सामूहिक प्रयासों से ’’श्रीश्री दुर्गा मंडप’’ का निर्माण सन्् 1959 में करवाया गया । मंडप में 1959 में शुरू हुई प्रथम पूजा के साथ निर्बाद्ध रूप् से दुर्गा पूजा महोत्सव चल रहा है। मंदिर के निर्माण में ज्योतिष घोष, डाॅ.एस.के.घोषाल, डाॅ.हेमचंद्र भट्टाचार्य, ओ.के. बनर्जी सहित अनेक लोगों का अनुकरणीय योगदान रहा है।
एक ही मंडप में पूजा-
दुर्गाबाड़ी (बंगाली मंदिर) में एक ही परिकर में महिषासुर मर्दनी देवी के साथ भगवान कार्तिकेय, गणेश आदि देवी देवताओं की प्रतिमाओं की पूजा की जाति है वहीं अन्य स्थानों पर होने वाले दुर्गा पूजा महोत्सव में मूर्तियां अलग अलग रहती है। शहर के परकोटे में केवल महिषासुर मर्दनी की ही प्रतिमा की पूजा अर्चना की जाती है। बंगाली मंदिर में महोत्सव से दो माह पूर्व ही मूर्तिकार प्रदीपदास अपनी टीम के साथ पहुंचकर मूर्तियों बना रहे है, करोना काल में मूर्तिकार के बीकानेर नहीं पहुंचने पर अन्य स्थानों से मूर्ति बनाकर पूजा की गई। इस बार सीकर से महिषासुर मर्दनी की मूर्ति बनवाकर रविवार को मंगवाई गई है । मूर्ति में कोलकाता की गंगा नदी की चिकनी मिट्टी, घास,बांस की खपचियां, सूतली व सांचें का उपयोग किया जाता है। इसबार एक ही मंडप की बजाए देवी दुर्गा, महालक्ष्मी, महासरस्वती, सिंह के रूप् में महिषासुर, कार्तिकेय व गणेशजी की प्रतिमाएं अलग अलग बनवाकर एक ही परिकर में स्थापित की गई है।
बंगाली मंदिर में सात दिन व अन्य स्थानों पर दस दिन चलता है दुर्गा पूजा महोत्सव
बंगाली मंदिर में दुर्गा पूजा महोत्सव आश्विन छठ से लेकर दशहरा तक व शहर के विभिन्न स्थानों पर प्रथम नवरात्रा से दशहरा तक दस दिन दुर्गा पूजा महोत्सव चलता है। संस्थान अध्यक्ष वासुदेव गोस्वामी ने बताया कि सोमवार 11 अक्टूबर को षष्ठी पूजा, बोधन यानि मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा के साथ पश्चिमी बंगाल से आए पंडित काजोल चक्रवर्ती ने दुर्गापूजा महोत्सव शुरू करवाया जो 15 अक्टूबर तक चलेगा। बीकानेर बंगाली संस्थान के उपाध्यक्ष व जुड़े स्वर्ण आभूषण के कारीगर बबलू बंगाली व सचिव समीर पाल ने बताया कि पश्चिम बंगाल के पंडित काजल चक्रवर्ती व प्रणय चक्रवर्ती बीकानेर पहुंच चुके है। पूजा के दौरान नियमित पुष्पांजलि, भोग व आरती, चंड़ी पाठ के आयोजन होंगे।
नहीं होते अब सांस्कृृतिक कार्यक्रम
दुर्गाबाड़ी में पिछले 10-15 साल पूर्व तक नियमित रवीन्द्र संगीत, बांग्ला नाटक, भक्ति संगीत के कार्यक्रम दुर्गा पूजा के साथ होते थे। दुर्गाबाड़ी में इसके लिए रंगमंच भी बनाया हुआ है। वर्तमान में यह रंगमंच जीर्णशीर्ण होने से सांस्कृृतिक कार्यक्रम बंद कर दिए गए हैं। सांस्कृृतिक कार्यक्रम बंद होने का एक कारण वहां 1960 से 115 रुपए मासिक किराएं पर (लगभग 20 साल से बिना किराएं) चल रहा राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय रानी बाजार भी है। शिक्षा विभाग द्वारा सार्वजनिक निर्माण विभाग से आंकलन करवाकर किराया तय नहीं करने, बीस साल से किराया नहीं देने से भवन के विकास में बाधा आ रही है। रंगमंच के स्टेज व दर्शक दीर्धा पर लगे टीन शैड के छप्पर 61 साल पुराने होने के कारण जगह जगह छेद से क्षतिग्रह हो चुके है। वक्त परिस्थिति के कारण अब ये बंद हो गए है। वक्त परिस्थिति के कारण अब ये बंद हो गए है। कार्यक्रम के दौरान कोई हादसा नहीं हो इसके लिए सांस्कृृतिक गतिविधियों को अवरुद्ध कर दिया। संस्थान उपाध्यक्ष बबलू बंगाली ने बताया कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों को अनेक बार लिखित में भवन को अन्यत्र स्थानान्तरित करने व मरम्मत करवाने की अनुमति देने के क्षेत्र में कोई कार्यवाही नहीं कर रहे है।
शहर में दुर्गा पूजा उत्सव- मोहता चैक में दो दशक से अधिक समय पूर्व गृृहस्थ संत व देवी उपासक पंडित दाऊ दयाल व्यास उर्फ दैया महाराज ने दुर्गा पूजा महोत्सव का आगाज किया । उसके बाद बारह गुवाड़, रताणी चैक, तेलीवाड़ा सहित विभिन्न चैक व मोहल्लों में दुर्गा पूजा महोत्सव शुरू हो गए। इस बार गोपेश्वर बस्ती मार्ग पर भी दुर्गा पूजा महोत्सव मनाया सजा रहा है। इन स्थानों पर वेदपाठी ब्राहमण दुर्गा सप्तशती पाठ सहित देवी की विभिन्न स्तुतियां से देवी की आराधना कर रहे है। करोनाकाल में दो साल से बंद दुर्गा पूजा में इस बार श्रद्धालुओं में अधिक उत्साह है। शहर में होने वाले दुर्गा पूजा महोत्सवों में मूर्तियां बंगाली व प्रदेश के विभिन्न इलाकों के पूगल मार्ग व जयपुर रोड पर बैठे कुम्हार कलाकारों से मूर्तियां बनाकर पूजा कर रहे है। मूर्ति स्थल पर हो रोशनी की सजावट की गई है।
शिव कुमार सोनी
वरिष्ठ सांस्कृृतिक पत्रकार