तेरापंथ के प्रथम आचार्य भिक्षु को आचार्यश्री ने श्रद्धा के साथ किया स्मरण
-चतुर्मास लगने से पूर्व ही चतुर्दशी के संदर्भ में उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ को मिली प्रेरणा
-शासनमाता की चतुर्थ पुण्यतिथि पर आचार्यश्री ने किया उनका स्मरण
छापर, चूरू 12 जुलाई। वर्ष 2022 का चतुर्मास करने को छापर में विराजमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि, तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालूगणी की जन्मस्थली छापर और चतुर्मास की स्थापना से पूर्व का दिन। आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी और चतुर्दशी का संयोग।
मंगलवार को प्रातः नौ बजे आचार्यश्री महाश्रमण चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने भव्य प्रवचन पंडाल में मंचासीन हुए। आज के कार्यक्रम में तेरापंथ धर्मसंघ के प्रथम अनुशास्ता आचार्य भिक्षु के जन्मदिवस का आयोजन, चतुर्दशी तिथि होने के कारण हाजरी का क्रम और मुम्बई में कालधर्म को प्राप्त शासनश्री साध्वी कैलाशवतीजी की स्मृति सभा का समायोजन। इस कारण श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति के साथ-साथ गुरुकुलवासी साधु-साध्वियों के साथ समणीवृंद और मुमुक्षु बाइयों की भी उपस्थिति। आचार्यश्री के आसपास बैठे साधु-साध्वियों के समूह के कारण आज ऐसा महसूस हो रहा था मानों आचार्यश्री की श्वेत रश्मियां चारों ओर प्रस्फुटित हो रही हों।
आचार्यश्री के नमस्कार महामंत्रोच्चार के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। मुनि हेमराजजी आचार्य भिक्षु के चरित्र पर प्रकाश डाला। मुनि राजकुमारजी ने गीत का संगान किया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आज एक संयोग है कि आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी और चतुर्दशी संयुक्त रूप में है। आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी को महामना आचार्य भिक्षु के जन्मदिन होने का अवसर मिला। महापुरुषों के साथ जुड़कर तिथियां भी मानों धन्य बन जाती हैं। जिस प्रकार कार्तिकी अमावस्या भगवान राम और भगवान महावीर के जुड़कर धन्य हो गई और दीपावली के रूप में स्थापित हो गई। हम सभी का जीवन उपचार और व्यवहार से युक्त है। उपचार और व्यवहार के कारण ही हम उन तिथियों का मना भी लेते हैं। इससे आदमी की श्रद्धाभिव्यक्ति भी हो जाती है और इस दौरान सिद्धान्तों आदि को जानने का भी अच्छा अवसर प्राप्त हो जाता है। विक्रम संवत् 1783 को आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी को कांठा क्षेत्र के कंटालिया गांव में आचार्य भिक्षु का जन्म हुआ था।
भगवान महावीर और आचार्य भिक्षु में अनेक समानताएं हैं। भगवान महावीर का जन्म शुक्ला त्रयोदशी को हुआ तो आचार्य भिक्षु का जन्म भी शुक्ला त्रयोदशी को हुआ। भगवान महावीर की माताजी ने सिंह का स्वप्न देखा तो आचार्य भिक्षु की माताजी ने भी सिंह का स्वप्न देखा। भगवान महावीर ने गृहस्थावस्था में पाणीग्रहण किया तो आचार्य भिक्षु ने भी गृहस्थावस्था में पाणीग्रहण किया। दोनों को विवाह के उपरान्त एक-एक पुत्री हुई। भगवान महावीर की दो माताएं थीं तो आचार्य भिक्षु की भी दो माताएं थीं। भगवान महावीर ने एक नए तीर्थ की स्थापना की तो आचार्य भिक्षु ने भी तेरापंथ धर्मसंघ के एक रूप में एक नए तीर्थ की स्थापना की। भगवान महावीर और आचार्य भिक्षु दोनों दो-दो भाई थे और दोनों ही इस क्रम में छोटे थे। दोनों का महाप्रयाण भी चतुर्मास के बीच में ही हुआ। इस प्रकार भगवान महावीर और आचार्य भिक्षु में अनेक समानताएं हैं।
आचार्य भिक्षु के पास शरीर और ज्ञान की अच्छी सम्पदा थी। उनके ग्रंथों को पढ़ने से लगता है उनका ज्ञान कितना निर्मल था। उनकी शील सम्पदा और व्यवहार भी कितनी अच्छी थी। उनकी बुद्धि उच्च स्तर की थी। इस कारण उनके समझाने की अपनी कला थी। महामना आचार्य भिक्षु का जन्मदिवस बोधि दिवस के रूप में स्थापित है। आज के दिन उनको बोधि की प्राप्ति हुई थी। मैं आज के दिन उनको श्रद्धा के साथ स्मरण करता हूं। आज आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी भी है। चतुर्मास लगने से ठीक पहले की तिथि है। इस बार हमारा चतुर्मास परम पूज्य आचार्य कालूगणी की जन्मभूमि पर छापर में हो रहा है। यहां के आसपास के क्षेत्रों को भी इसका लाभ प्राप्त हो रहा है।
आज शासनमाता साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी की चतुर्थ मासिकी पुण्यतिथि है। उन्होंने साहित्य का कितना कार्य किया। वे धर्मसंघ की महान विभूति थीं, जिनके हाथ से 500 से अधिक साध्वियों के केशलोच ही नहीं, उनकी सार-संभाल का दायित्व भी पचास वर्षों तक निभाया। दो महिने पूर्व आज के ही दिन मैंने उनके स्थान पर साध्वी विश्रुतविभाजी को साध्वीप्रमुखा के रूप में मनोनीत किया। वे अपनी सेवाएं प्रदान कर रही हैं। इस संदर्भ में साध्वी कल्पलताजी ने अपने विचार व्यक्त किए।
आचार्यश्री ने हाजरी का वाचन करते हुए चारित्रात्माओं को विविध प्रेरणाएं प्रदान कीं। आचार्यश्री की आज्ञा से मुनि रत्नेशकुमारजी, मुनि अर्हमकुमारजी, मुनि खुशकुमारजी व मुनि ऋषिकुमारजी ने लेखपत्र का उच्चारण किया तो आचार्यश्री ने चारों संतों को चार-चार कल्याणक बक्सीस की। आचार्यश्री ने सभी साधु-साध्वियों को चतुर्मास के दौरान अध्ययन, स्वाध्याय करने की प्रेरणा प्रदान की।
आचार्यश्री ने आठ जुलाई को मुम्बई में कालधर्म को प्राप्त साध्वी कैलाशवतीजी की स्मृतिसभा के संदर्भ में उनके जीवनवृत्त संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना की तथा चतुर्विध धर्मसंघ के साथ चार लोगस्स का ध्यान किया। उनके संदर्भ में साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यमुनिश्री और मुनि दिनेशकुमारजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम में श्री इन्द्राज नाहटा, श्री सुमेरमल नाहटा व श्री नरपत मालू ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। हैदराबाद-छापर महिला मण्डल, श्रीमती जतनबाई नाहटा, श्रीमती शशि चोरड़िया, श्रीमती शिवांगी मेहता व श्री प्रवीण मालू ने गीत का संगान किया।