सृष्टि में दो ही तत्त्व जीव और अजीव: अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमण
-भगवती सूत्र के माध्यम से आचार्यश्री जैन दर्शन के सिद्धांतों का किया वर्णन
-कालूयशोविलास की गाथा में आचार्य डालगणी के महाप्रयाण का रहा प्रसंग
-तेरापंथ किशोर मण्डल के 17वें अधिवेशन के 700 किशोर पहुंचे पूज्य सन्निधि में
शनिवार, छापर, चूरू, 30 जुलाई। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालूगणी की धरा छापर में वर्ष 2022 का मंगल चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाचार्य, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी श्रद्धालुओं को जहां भगवती सूत्र आगम के माध्यम नित नई प्रेरणाएं प्रदान कर रहे हैं, वहीं कालूयशोविलास के सुमधुर गायन के साथ स्थानीय भाषा में आख्यान का श्रवण भी करा रहे हैं। निरंतर रूप से प्रवाहित हो रहे इस ज्ञानगंगा में श्रद्धालुजन नियमित रूप से गोते लगा अपने जीवन को धन्य बना रहे हैं।
शनिवार को आचार्यश्री ने भगवती सूत्र और कालूयशोविलास का श्रवणामृत प्रदान किया। साथ ही अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के तत्त्वावधान में 17वें तेरापंथ किशोर मण्डल अधिवेशन के क्रम में देशभर से लगभग 700 किशोरों को भी आचार्यश्री ने संस्कारवान बनने के साथ तत्त्वज्ञान के क्षेत्र में अच्छे विद्वता अर्जित करने की प्रेरणा भी प्रदान की। आचार्यश्री से पावन प्रेरणा व आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त कर किशोर उत्साहित और उल्लसित नजर आ रहे थे।
शनिवार को प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुजनों व किशोरों को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र के आधार पर पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि भगवान महावीर के एक शिष्य अनगार रोह ने यह प्रश्न किया कि लोक पहले बना और अलोक बाद में बना अथवा अलोक पहले बना और लोक बाद में बना। दोनों में पहले और बाद में कौन बना। भगवान महावीर ने कहा कि लोक और अलोक पहले भी थे और आगे भी रहेंगे। दोनों शाश्वत भाव है, अनानुपूर्वी है। इनमें पहले और पीछे का कोई क्रम ही नहीं है। फिर प्रश्न पूछा कि पहले जीव हुए या पहले अजीव हुए। इनमें कौन पहले और कौन बाद में आया। महावीर ने पुनः कहा कि जीव और अजीव में भी कोई आगे-पीछे की बात नहीं, दोनों ही हमेशा थे, आज भी हैं और आगे भी रहेंगे। जैन दर्शन का सिद्धांत है कि सृष्टि हमेशा थी और यहां जीव और अजीव दोनों ही हमेशा से ही हैं। सृष्टि एक शाश्वत तत्त्व है। अनेक दर्शन और सिद्धांतों ने अपने-अपने अनुसार सृष्टि के निर्माण के विषय में अपने-अपने सिद्धांत देते हैं। जैन दर्शन के अनुसार सृष्टि में जीव और अजीव दो ही तत्त्व हैं। अलोक अथवा अलोकाकाश में तो केवल अजीव ही हैं। उसमें जीव होते ही नहीं है। सारे जीव और पुद्गल इस लोकाकाश में ही हैं। स्वर्ग, नरक, उर्ध्वलोक और अधोलोक सब इसी लोकाकाश में है। छह द्रव्यों वाला यह लोक है। जहां एक ही द्रव्य है, वह अलोकाकाश है। जैन दर्शन में आत्मवाद, कर्मवाद, लोक-अलोकवाद और क्रियावाद चार सिद्धांत हैं, जिनमें तीन तो अतिमहत्त्वपूर्ण हैं।
हमारे सामने इतने किशोर बैठे हैं, वे स्कूल और कॉलेजों आदि में पढ़ते हैं। वे समय निकालें और जैन दर्शन के सिद्धांतों को जानने का प्रयास करें। आचार्य महाप्रज्ञ की पुस्तक जैन दर्शन: मनन को मीमांसा उससे भी अनेक जानकारियां भी प्राप्त की जा सकती हैं। किशोर मण्डल के किशोरों में बुद्धि और प्रतिभा हो सकती है तो वे समय निकालकर जैन दर्शन, तेरापंथ के इतिहास आदि के सिद्धांतों को जानने और पढ़ने का प्रयास करें और जैन दर्शन के अच्छे जानकार , विद्वान, प्रवक्ता भी बनें और हिन्दी अथवा अंग्रेजी में भाषण दे सकें। ऐसे किशोर सामने आएं तो जैन दर्शन के विद्वान, प्रवक्ता बनने का प्रयास करें।
तदुपरान्त आचार्यश्री ने आचार्य कालूगणी के अंतिम समय के कार्यों का वर्णन करते हुए उनके महाप्रयाण और महाप्रयाण के बाद मुनि मगनजी द्वारा मनुहार कर किस प्रकार मुनि कालू को आचार्य पट्ट पर बिठाया-ऐसे प्रसंगों का रोचक वर्णन और सुमधुर संगान किया। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्याजी ने श्रद्धालुओं को प्रेरणा प्रदान की।
17वें राष्ट्रीय तेरापंथ किशोर मण्डल के अधिवेशन के संदर्भ में तेरापंथ किशोर मण्डल के राष्ट्रीय प्रभारी श्री विशाल पितलिया ने अवगति प्रदान की। तेरापंथ किशोर मण्डल द्वारा गीत का संगान किया। इस संदर्भ में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री पंकज डागा ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। साध्वीप्रमुखाजी ने भी किशोरों को उत्प्रेरित किया। मुख्यमुनिश्री ने भी किशोरों को संबोधित किया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने किशोरों को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि किशोरावस्था ज्ञानार्जन, चारित्रिक निर्माण और विकास की अच्छी संभावना वाली होती है। किशोरों के अच्छे संस्कारों का विकास हो तो उनकी स्वयं की आत्मा के साथ दूसरों के लिए भी अच्छी बात हो सकती है। स्कूली शिक्षा के साथ धर्म और अध्यात्म की शिक्षा का विकास हो तो अच्छी बात हो सकती है। विद्वता, गुणवत्ता के साथ सभ्यता और संस्कारों का विकास हो तो विशेष बात हो सकता है। तीन वर्षों बाद किशोरों को अच्छा अवसर मिला है।