छापर चतुर्मास में भगवती सूत्र से जीवन के सूत्रों उद्घाटित कर रहे युगप्रधान आचार्य
-चतुर्दशी तिथि के हाजरी के क्रम में चारित्रात्माओं को भी आचार्यश्री से मिली प्रेरणा
छापर, चूरू, 27 जुलाई। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालूगणी की जन्मभूमि पर 74 वर्षों बाद चतुर्मास कर रहे तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी श्रद्धालुओं को भगवती सूत्र आगम के माध्यम से जीवन के महनीय सूत्र प्रदान कर रहे हैं। आचार्यश्री की मंगलवाणी का श्रवण करने न केवल तेरापंथी, बल्कि अन्य समाज के श्रद्धालु भी प्रतिदिन उपस्थित होते हैं। आचार्यश्री की कल्याणवाणी से जन-जन का कल्याण हो रहा है।
बुधवार को श्रावण कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि होने के कारण प्रवचन पंडाल के मंच पर आचार्यश्री महाश्रमणजी के साथ गुरुकुलवासी साधु-साध्वियों की प्रायः उपस्थिति थी। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के नियमानुसार हाजरी वाचन का क्रम भी था। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्राधारित अपनी कल्याणी वाणी से लोगों को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि परमाणु अनंत अतीतकाल में भी रहा, वर्तमान में भी है और अनंत भविष्य में भी रहेगा, ऐसा कहा जा सकता है। हां! ऐसा कहा जा सकता है कि यह परमाणु अनंत अतीतकाल में भी था, वर्तमान में भी है और अनंत भविष्य में भी रहेगा। पुद्गल और जीव के विषय में बताया गया कि पुद्गल और आत्मा दोनों ही शाश्वत त्रैकालिक हैं।
इस सृष्टि में पुद्गल और जीव जीवन में स्पष्ट रूप में काम आते हैं। मानव के व्यवहार में आने वाले भी पुद्गल और जीव होते हैं। चारित्रात्माओं को भी कितना पुद्गलों का उपयोग करना होता है। व्याख्यान देने के लिए भी पुद्गल कितना काम आता है। सामने ग्रन्थ और शास्त्र हैं तो आसानी से कोई बात बताई जा सकती है। जीव परस्पर उपकार करने वाले होते हैं। परस्पर उपकार मानों एक जीवन के क्रम से जुड़ा हुआ है। किसी को एक रोटी खाने को मिलती है तो उसके पीछे कितनों का उपकार जुड़ा हुआ होता है। किसान ने खेत में उगाया, फसल तैयार हुई तो उसकी कटाई हुई, फिर अनाज मंडी में पहुंचा। उसे किसी ने खरीदा तो किसी ने तैयार किया तो किसी ने ग्राहकों तक पहुंचाया। अनाज पहुंचा भी तो किसी ने उसे पकाया और फिर किसी को खिलाया अथवा साधु-संतों को बहराया तो जाकर पुनः खाने के लिए प्राप्त हुआ। इस प्रकार मानों जीव के परस्पर उपकार का एक क्रम बना हुआ है। आदमी का जीवन सहयोग से ही चलता है, पूर्णतया बिना सहयोग के जीवन जीना तो मुश्किल ही है।
आदमी को अपने जीवन में सेवा व सहयोग देने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को जितना अपेक्षित हो सहयोग लेना भी चाहिए, किन्तु दूसरों को सहयोग देने का प्रयास करना चाहिए। साधु-साध्वियां भी सोंचे कि हम वृद्ध चारित्रात्माओं को कितना सहयोग और सेवा दे सकें ताकि उन्हें चित्त समाधि प्राप्त हो सके। भले वह शारीरिक हो, मानसिक हो अथवा ज्ञानात्मक हो। आदमी को परस्पर सहयोग की भावना को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।
प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने हाजरी का वाचन करते हुए समुपस्थित चारित्रात्माओं को विविध प्ररेणाएं प्रदान कीं। तदुपरान्त आचार्यश्री की अनुज्ञा से साध्वी ख्यातिप्रभाजी, साध्वी ऋजुप्रभाजी, साध्वी काम्यप्रभाजी, साध्वी आर्षप्रभाजी, साध्वी सात्विकप्रभाजी, साध्वी रोहिणीप्रभाजी, साध्वी नमनप्रभाजी व साध्वी युक्तिप्रभाजी ने लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री ने साध्वी युक्तिप्रभाजी को पांच कल्याणक व शेष साध्वियों को दो-दो कल्याणक बक्सीस किए। तत्पश्चात समस्त साधु-साध्वियों ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री ने वयोवृद्ध साध्वी चांदकुमारीजी के संयम पर्याय के 75 वर्ष के संदर्भ पावन आशीष प्रदान किया।