नरक, तीर्यंच, मनुष्य और देव रूपी चार अवस्थानों को आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित
-आचार्यश्री ने कालूयशोविलास की गाथा में आचार्य माणकगणी के आचार्यकाल का वर्णन
-मुमुक्षु अश्विनी को 9 सितम्बर को युगप्रधान आचार्यश्री प्रदान करेंगे मुनि दीक्षा
छापर, चूरू, 22 जुलाई। भगवती सूत्र में संसार में चार अवस्थान काल बताए गए हैं- नरक, तीर्यंच, मनुष्य और देव। संसार में दो प्रकार के जीव हैं-सिद्ध और संसारी। जो जीव सिद्ध हो गए, उनके न कोई शरीर, न वाणी व मन आदि नहीं होते। वे आत्म रूप में होते हैं, वे मोक्ष में रहने वाले हैं। जो जीव एकबार मुक्त अवस्था को प्राप्त हो जाता है, सिद्ध, बुद्ध बन जाता है, वह फिर संसार में जन्म नहीं लेता और जो जन्म नहीं लेगा तो उसकी मृत्यु भी नहीं होती। संसारी जीव होते हैं, जिनका जन्म और मृत्यु होता है।
संसारी का अर्थ है संसरण करने वाले। एक गति से दूसरे गति में जाने वाले, जन्म-मृत्यु करने वाले। ये संसारी जीव चार भागों में विभक्त हैं-नरक, तीर्यंच, मनुष्य और देव। इनमें संसारी जीव जन्म-मरण करता रहता है। यह जन्म-मरण का चक्र अनादि काल से चला आ रहा है। कई जीव आज तक वनस्पति काय से बाहर ही नहीं निकले, किन्तु कई जीव अनेक गतियों में जन्म ले सकते हैं। जिस गति में जितने समय तक अवस्थिति होती है, उस कालांश को उस जीव का संसार अवस्थान काल कहा जाता है।
एक काल स्थिति में जन्म लेना और अपने परिणाम स्वरूप अनेक गतियों में जाना भव गति होती है। नरक, तीर्यंच, मनुष्य और देव-इन चार गतियों में संसारी जीव परिभ्रमण करता रहता है। वह अनेकानेक बार जन्म और मृत्यु को प्राप्त हो चुका है। आदमी यह सोचे कि उसे ऐसा क्या करना चाहिए कि इन गतियों से उसे मुक्ति प्राप्त हो सके। इसके लिए आदमी को मोक्ष प्राप्ति की साधना का प्रयास करना चाहिए। अपने कषायों को कम करने अथवा उन्हें समाप्त करने का प्रयास करे तो मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ सकता है। जीवन में सादगी, संतोष आदि हो तो आदमी मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है।
उक्त मंगल प्रेरणा शुक्रवार को चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने भव्य प्रवचन पण्डाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रदान की। आचार्यश्री ने कालूयशोविलास का गायन कर उसका स्थानीय भाषा में वर्णन करते हुए कहा कि मघवागणी के महाप्रयाण के बाद आचार्य माणकगणी का कार्यकाल आरम्भ हुआ। लगभग साढ़े चार वर्ष का उनका आचार्यकाल रहा और आचार्य माणकगणी के शरीर मंे बढ़ी तकलीफ के कारण उनका भी महाप्रयाण हो गया। इस प्रकार उन्होंने अपने उत्तराधिकारी का नाम घोषित नहीं किया। उनके महाप्रयाण के बाद धर्मसंघ के सामने एक संकट की-सी स्थिति उत्पन्न हो गई।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री के समक्ष मुमुक्षु दक्ष नखत और मुमुक्षु अश्विनी उपस्थित हुए। दोनों ने आचार्यश्री से दीक्षा प्रदान करने की प्रार्थना की तो आचार्यश्री ने पहले मुमुक्षु अश्विनी को साधु प्रतिक्रमण सीखने का आदेश प्रदान किया। तदुपरान्त दोनों मुमुक्षुओं को दीक्षार्थी के रूप में स्वीकृति और कुछ समय पश्चात् आचार्यश्री ने मुमुक्षु अश्विनी को आगामी 9 सितम्बर को होने वाली दीक्षा में मुनि दीक्षा देने की घोषणा की। आचार्यश्री की इस घोषणा से पूरा प्रवचन पण्डाल जयघोष से गुंजायमान हो उठा।