बीकानेर-21अगस्त। पर्यटन लेखक संघ-महफिले अदब की साप्ताहिक काव्य गोष्ठी की 542 वीं कड़ी में रविवार को हिंदी-उर्दू के रचनाकारों ने एक से बढ़कर एक रचना सुना कर दाद लूटी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शारदा भारद्वाज ने देशप्रेम की रचना सुनाई-
ऐ हिन्द मेरे हमेशा तू ख़ैरो, ख़ुश आबाद रहें
चमन रहे खुशहाल मेरा,तू मुसर्रत, शादाब रहें
वरिष्ठ शाइर ज़ाकिर अदीब ने अपने रंग की ग़ज़ल पेश की-
हिम्मत न जाने कितनी अभी बालो-पर में है
पंछी लहूलुहान है लेकिन सफ़र में है
संयोजक डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने साहिब रदीफ़ ग़ज़ल सुना कर सराहना प्राप्त की-
जोश जो था किधर गया साहिब
क्यूँ ये दरिया उतर गया साहिब
शाइर इरशाद अज़ीज़ बेक़रारी की बात कही-
जिसको चाहा वो हो गया तेरा
बेक़रारी का फिर सबब क्या है
वली मुहम्मद ग़ौरी वली रज़वी ने ग़ज़ल सुना कर सभी का ध्यान खींचा-
शुहरत के लिये अपनी अना बेच रहा है
नादान तू ये सोच ये क्या बेच रहा है
इम्दादुल्लाह बासित ने “खुदा का घर है ये हरगिज़ ना गुनहगार बनो”, युवा कवि पूनमचंद गोदारा ने “घर घर का अभियान तिरंगा”, डॉ जगदीशदान बारहठ ने “मैं मिट्टी की लावारिस मटकी” व शकील अंसारी ने “मुफलिसी के सताए हुए वो लोग” सुना कर गोष्ठी में नए नए रंग भरे।संचालन डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने किया।