बीकानेर-31जुलाई। पर्यटन लेखक संघ-महफिले अदब के साप्ताहिक अदबी कार्यक्रम की 539 वीं कड़ी के अंतर्गत रविवार को होटल मरुधर हेरिटेज में माहाना तरही नशिस्त का आग़ाज़ हुआ जिसमें शहर के शायरों ने कलाम पेश कर दाद बटोरी।पहली कड़ी का मिसरा ए तरह था-“मेरे ही दम से मेहरो-वफ़ा का निशाँ है अब।”
सदारत करते हुए वरिष्ठ शाइर ज़ाकिर अदीब ने अपने शे’र में उर्दू के लिए दर्द बयां किया-
उर्दू से है लगाव ये कहते तो हैं सभी
उर्दू है जिसका नाम किसकी ज़बाँ है अब
मुख्य अतिथि मौलाना अब्दुल वाहिद अशरफी ने नए अंदाज का शे’र सुना कर वाह वाही लूटी-
तन्हा खड़ा हूँ धूप में सूरज को ओढ़कर
साया शजर का है ना कोई साएबाँ है अब
संयोजक डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी की ग़ज़ल भी खूब सराही गई-
रक्खा है माँ के पांव में अपना जो सर”ज़िया”
पहले ज़मीन था ये मगर आसमाँ है अब
असद अली असद ने चमन की सूरते हाल बयान की-
कैसा चमन का हाल है,क्या बागबाँ है अब
हरसू कभी बहार थी लेकिन खिज़ां है अब
शाइर इरशाद अज़ीज़ ने “दिल जल रहा है चार सू देखो धुंवा है अब”, वली मुहम्मद गौरी वली रज़वी गौरी ने “राहे वफ़ा में हौसला जिसका जवां है अब”,सागर सिद्दीकी ने “तेरे बग़ैर जान है और ना जहां है अब”,बुनियाद हुसैन ज़हीन ने “ज़िन्दा ज़मीर कोई बताओ कहाँ है अब”,इमदाद उल्लाह बासित ने “बासित तेरे वजूद का भी इम्तेहां है अब”,अमित गोस्वामी ने “अर्ज़े तलब की हमको इजाज़त कहाँ है अब”,राजेन्द्र स्वर्णकार ने “लगती नई ज़मीं है नया आसमाँ है अब”,मुफ़्ती अशफ़ाक़ उल्लाह गौरी उफ़क़ ने “जिसकी ज़ुबाँ पे नाज़ था वो बे ज़ुबाँ है अब”,निर्मल कुमार शर्मा ने “फ़र्क़ जो ये समझ पाए निगाहें वो कहाँ है अब”, अब्दुल जब्बार जज़्बी ने “हर साहिबे ज़बान यहां बे ज़ुबाँ है अब”,मुहम्मद इस्हाक़ ग़ौरी “किसी कहानी की कोई दास्तां है अब”,मुइनुद्दीन मुईन ने “कोई राहबर है ना कोई पासबाँ है अब”, युवा शाइर गुलफाम हुसैन “आही”ने “तुमने कहा कि शहर में अम्नो