नवकार से बड़ा कोई मंत्र नहीं-आचार्य श्री विजयराज जी
जीव दया को लेकर अनुकंपा दिवस मनाया
बीकानेर, 26 सितम्बर। भक्ति कई प्रकार की होती है, लेकिन हर भक्ति के साथ भावना जुड़ी होती है। भावना भक्ति के साथ जुड़ती है तो शक्ति बन जाती है और शक्ति वरदान बन जाती है। इसलिए भक्ति के साथ भावना का जुडऩा जरूरी है। भक्ति का ही एक रूप प्रभु भक्ति है और इसका पहला चरण नवकार भक्ति है। यह सद्विचार श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने सोमवार को अपने नित्य प्रवचन में व्यक्त किए। आचार्य श्री ने साता वेदनीय कर्म के नौंवे बोल भक्ति में रमण करता जीव साता वेदनीय कर्म का बंध करता है विषय पर व्याख्यान दे रहे थे। महाराज साहब ने जिनवाणी का श्रवण करते हुए भक्ति, नवकार की शक्ति, नवकार मंत्र के लाभ, उपयोगिता सहित संतों से मिलने वाले लाभ और मन की अवस्थाओं के बारे में श्रावकों को विस्तारपूर्वक एवं प्रसंग सहित जानकारी भी दी। आचार्य श्री ने बताया कि अगर नवकार भक्ति के प्रति अनंत आस्था, अखण्ड आस्था है तो प्रभु की भक्ति हम में है। नवकार के प्रति हममें श्रद्धा होनी चाहिए। बचपन से हम नवकार को गिनते आ रहे हैं, सुनते आ रहे हैं लेकिन देखने वाली बात यह है कि हमारे अंदर नवकार के प्रति आस्था कितनी है। बहुत से जैन धर्म में विश्वास रखने वाले, आस्था वाले लोग नवकार को छोड़ दूसरे मंत्रों का जाप करते हैं। लेकिन मैं उन्हें यह बताना चाहता हूं कि नवकार से बड़ा कोई मंत्र नहीं है। नवकार का उच्चारण सर्वज्ञों ने किया है और सर्वज्ञ कौन, जो तीनों कालों को, लोकों को जानने वाले होते हैं। सर्वत्र देव जिन्हें केवल्य ज्ञान की प्राप्ती होती है। सभी मंगलों में सर्वश्रेष्ठ पांचो पद नवकार के हैं। पंचम आरे में भी नवकार से बड़ी शक्ति नहीं है। आचार्य श्री ने फरमाया कि अगर आपकी आस्था, आपका विश्वास, आपकी श्रद्धा नवकार छोड़ो किसी भी मंत्र में नहीं है और आप उसका जाप करते हैं तो वह कभी कारगर नहीं होगा। मंत्र शक्ति के लिए उसमें भक्ति पहला चरण है।
आचार्य श्री ने भजन नवकार जपने से, सारे सुख मिलते हैं, जीवन में, तन-मन में, सारे सुख मिलते हैं। जाप जपो, जपते रहो, वन्दन करते हैं। सुनाकर नवकार मंत्र में ध्यान लगाने, विश्वास रखने और श्रद्धा के साथ निरन्तर जाप करने की बात श्रावक-श्राविकाओं से कही।
भजन ‘प्रभु में राग गुणसिन्धु अपरम्पार हो जाए, सफल सब और से पावन मनुज अवतार हो जाए, खुशी हो, रंज हो, कुछ हो, रहूं में एक सा हरदम, हद्धय के यन्त्र पर मेरा अटल अधिकार हो जाए’। सुनाकर इसके भावों की अभिव्यक्ति देकर सारांश बताया।
आचार्य श्री के जन्मोत्सव अवसर पर मनाया अनुकंपा दिवस
बीकानेर। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. के 64 वें जन्मोत्सव उपलक्ष पर श्री संघ की ओर से अष्ट दिवसीय विभिन्न धार्मिक ज्ञानोपयोगी कार्यक्रम अंतर्गत सोमवार को जीव दया के रूप में मनाया गया। संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि संसार के समस्त जीवों पर दया का भाव रखना मनुष्य का पहला कर्तव्य है। आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. के इस जीवन चरित्र को आधार मानकर श्रावक-श्राविकाऐं अपने-अपने घरों से पशुओं के लिए रोटी बनाकर, गुड़ व अन्य खाद्य सामग्री लेकर ढ़ढ्ढा कोटड़ी पहुंचे, जहां से यह भोजन असहाय, गरीब लोगों तक पहुंचाया गया। इस कार्य में संघ के पदाधिकारियों सहित महिला एवं युवा संघ ने भी भागीदारी निभाई एवं जीवदया में खुलकर सहयोग दिया। बाहर से आए अतिथियों ने भी अनुकंपा दिवस मनाया। कार्यक्रम के अंत में आचार्य श्री ने सभी तपस्या करने वालों को साधुवाद दिया। उपवास, तेला, बेला सहित अन्य तपस्या करने वालों को आशीर्वाद दिया।