कषायों पर विजय पाने वाला ही पाता है परम आनंद – आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.
बीकानेर, 27 सितम्बर। प्रभु भक्ति का दूसरा चरण लोगस भक्ति है। नवकार महामंत्र की तरह ही जैन धर्म में लोगस का पाठ आता है। इसमें 24 तीर्थंकरों की स्तुति की गई है। जब हम प्रभु स्तुति में लगते हैं तो परम आनंद की अनुभूति होती है। परम आनंद आत्मिक होता है। यह वही प्राप्त कर सकता है, जिसके कषाय शांत होते हैं। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने मंगलवार को अपने नित्य प्रवचन में साता वेदनीय कर्म का नौंवा बोल भक्ति में रमण करता जीव साता वेदनीय कर्म का बंध करता है के दूसरे चरण लोगस का महत्व श्रावक-श्राविकाओं को जिनवाणी के माध्यम से बताया। महाराज साहब ने कहा कि चार कषायों- लोभ, मोह, काम और क्रोध पर विजय पाने वाला ही प्रभु भक्ति के आनंद की प्राप्ति कर सकता है। लोगस का पाठ 24 तीर्थंकरों की स्तुति का पाठ है। यह हमारे आदर्श पुरुष हैं। जिनकी हम स्तुति करते हैं। यह हमारे अंदर प्रतिदिन नई ऊर्जा, नया उल्लास पैदा करती है। आचार्य श्री विजयराज जी ने बताया कि परम आनंद की प्राप्ति के लिए जरूरी नहीं कि संत या साधु हो, यह संसार में रहकर भी प्राप्त किया जा सकता है। सत- साहित्य का वाचन करने से हमें पता चलता है।
श्रावक – श्राविकाओं ने किया 32 आगम का स्वाध्याय
बीकानेर। सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी का प्रांगण, जहां हर जगह श्रावक-श्राविकाएं, साधु – साध्वियां, शांती से बैठे हैं। हाथों में आगम की किताबें और खामोशी से होंठ उनका वाचन कर रहे हैं। सुनाई दे रहा था तो सिर्फ पंछियों का कलरव और बाहर सडक़ पर आते-जाते वाहनों का शोर था। यह नजारा था मंगलवार को प्रथम प्रहर में आयोजित कार्यक्रम जिनवाणी के 32 आगम के स्वाध्याय का, जिसमें आगम की 80 हजार गाथाओं का प्रमाण है। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि संघ के आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब के अष्ट दिवसीय जन्मोत्सव कार्यक्रम अंतर्गत 32 आगम का स्वाध्याय रखा गया। इसमें बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने भाग लिया। लोढ़ा ने बताया कि दोपहर 2 से 3 बजे तक आचार्य श्री के सानिध्य में लोगस का सामूहिक जाप कार्यक्रम आयोजित हुआ। इसका बाहर से आए हुए संघ के सदस्यों ने भी लाभ लिया और मंगलिक सुनी।