टुडे राजस्थान न्यूज़ ( अज़ीज़ भुट्टा )
बीकानेर 12 जुलाई। पहलवान एवं फिल्मी एक्टर दारासिंह की 11वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आज आप पार्टी एवं अखिल भारतीय माल्हा भारोत्तोलन संघ के बैनर तले पुगल फांटा के पास यह आयोजन हुआ। इस अवसर पर पहलवान महावीर कुमार सहदेव ने बताया कि दारा सिंह की पुण्यतिथि पर कई युवकों ने नशा नहीं करने की कसम खाई। राह चलते कई युवा दारा सिंह के श्रद्धांजलि समारोह इस कार्यक्रम को देखकर रुके और उन्होंने तस्वीर से ही प्रेरणा लेकर कसम खाई कि हम दारा सिंह तो नहीं बनेंगे लेकिन नशे से दूर रहेंगे और अपने शरीर को स्वस्थ रखकर परिवार एवं देश की सेवा करेंगे। संपत लाल तंवर पहलवान महावीर कुमार सहदेव पुनसा महाराज एवं अन्य विशिष्ट लोगों ने दारा सिंह जी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। सभी गणमान्य ने अपने उद्बोधन में पुण्यतिथि पर नशा छोड़ने की अपील की।
आपका-पहलवान महावीर कुमार सहदेव 907987353
पहलवान महावीर कुमार सहदेव ने माल्हा उठाकर किया प्रदर्शन
विश्व विख्यात पहलवान दारा सिंह की 11वीं पुण्यतिथि पर बीकानेर के पहलवान महावीर कुमार सहदेव के नेतृत्व में पत्थर के चौकीनुमा बाट जैसी आकृति के माल्है को एक हाथ से उठाकर प्रदर्शन किया गया। विलुप्ता की कगार पर पहुंचे इस खेल जिनका समय-समय पर बीकानेर के पहलवानों के द्वारा आम जनता के बीच प्रदर्शन कर फिर से जीवित किया गया है। सहदेव काफी लंबे समय से स्वयं भी इस पत्थर के बने माल्हो को उठाते हैं एवं नव युवकों को भी इस कला के बारे में बताते हैं। पूरे भारतवर्ष में यह देसी वेट लिफ्टिंग एक जमाने में हुआ करती थी। जितने भी पहलवान हुए हैं सब ने इस पत्थर के माल्हे से कसरत की है ।इस खेल को कहीं पर नाल उठाना भी कहते हैं और कहीं पर मुगदर भी कहा जाता है। बीकानेर में अंग्रेजी शासन के वक्त इस प्रकार के बाट हुआ करते थे इन बाट को देखकर पत्थर को तरास कर चौकीनुमा माल्हा बनाया गया। केवल 20 सेकंड का यह खेल एक समय में बड़ा लोकप्रिय था। खेल भी बड़ा अनोखा है जिसको इस खेल का तजुर्बा होता है वही यह खेल खेल सकता है। आपको बता दें कि बीकानेर में ही सिर्फ इसको माल्हे नाम से जाना जाता है।पूरे भारतवर्ष में अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से इसको पुकारा जाता है। 25 वर्षों से इस खेल को जीवित रखे हुए हैं हमारे बीकानेर के वरिष्ठ पहलवान महावीर कुमार सहदेव। मैले मगरियों व देहात के क्षेत्रो में अभी भी लोग होली, तीज, ईद, मुहर्रम पर इस खेल का आयोजन करते हैं और अपनी अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार विभिन्न भार वर्ग के इन माल्हो को लोग भांति भांति के करतब कर उठाते हैं। राजस्थान में इस खेल को जीवित रखने वाले बीकानेर के पहलवान महावीर कुमार सहदेव ही हैं जिन्होंने इस खेल की कई प्रतियोगिताएं करवाई और इस खेल से जुड़े युवकों को प्रोत्साहन भी दिया।