टुडे राजस्थान न्यूज़ ( अज़ीज़ भुट्टा )
बीकानेर / भीनासर ,15 सितंबर । भीनासर में पर्युषण पर्वारा घना के चौथे दिन वाणी संयम दिवस पर धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए मुनिश्री चैतन्य कुमार “अमन” ने कहा- “दुनियां में होने वाले झगड़ो का मूल कारण है वाणी का असंयम। भाषा दूसरों से जोड़ती भी है और तोड़ती भी है। थोड़ा, धीमे, प्रिय, मधुर व हितकारी वचन बोलने वाला अच्छा लगता है। वाणी व्यक्ति के चरित्र की पहचान है। अनावश्यक नहीं बोलना भी मौन है। जहां अपेक्षित है वहां बोलना भी चाहिए।
यद्यपि मौन को भीतर का प्रवेश द्वार माना गया है।
मुनि अमन ने बताया – भगवान महावीर ने मौन को साधना का अनिवार्य अंग बनाया। इसीलिए वे साढ़े बारह वर्ष की साधना काल में बहुत कम कोले। मौन मन की शान्ति का अचूक उपाय है। विवाद को समाप्त करने की अनमोल चाबी है, विचारों का अल्पीकरण है। जितने महापुरुष हुए है वे बहुत कम बोलते है। कम बोलने वाले को ऊंचा स्थान मिलता है और ज्यादा बोलने वाले नीचा स्थान- जैसा कि कम बोलने वाला हार कंठों में शोभायमान होता है और पायजेब को पैरों का स्थान अतः व्यक्ति को चाहिए कि वाणी का संयम रखे और शक्ति का सदुपयोग करने सदुपयोग करने का प्रयास करें। इस अवसर पर कोचर परिवार की बहनों ने गीतिका का संगान करते हुए श्री मंगलाचरण किया।