टुडे राजस्थान न्यूज़ ( अज़ीज़ भुट्टा )
बीकानेर 07 अक्टूबर । देश के विख्यात साहित्यकार और साहित्य अकादेमी नई दिल्ली में राजस्थानी भाषा के समन्वयक अर्जुनदेव चारण ने राजस्थानी साहित्यकार अन्नाराम सुदामा की तुलना कबीर से की है। उन्होंने कहा कि राजस्थानी के आधुनिक रचनाकार में सुदामा प्रथम पंक्ति में है। चारण यहां साहित्य अकादेमी नई दिल्ली और रमेश मेमोरियल एज्यूकेशन संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार से दो दिवसीय अन्नाराम सुदामा जन्मशती संगोष्ठी में बोल रहे थे।अंत्योदय नगर स्थित रमेश इंग्लिश स्कूल में आयोजित संगोष्ठी में सुदामा की कहानी, कविता और निबंध पर चर्चा हो रही है।
उद्घाटन सत्र में चारण ने कहा कि हर रचनाकार अपनी रचना में मृत्यु से भिडंत करता है। अन्नाराम सुदामा की राजस्थानी भाषा की उपन्यास के मूल तत्व को समझना जरूरी है। युवा रचनाकारों को आंकलन करना चाहिए कि नई पीढी को उनको पढ़कर अपने लेखन में सुधार करना चाहिए। उनके साहित्य सृजन के मूल में जाकर उसको अपनाना चाहिए।इस मौके पर राजस्थानी साहित्यकार और अन्नाराम सुदामा के पुत्र मेघराज शर्मा ने कहा कि वो जैसा देखते थे, वैसा लिखते थे। हमारे अंदर शब्दों का ज्ञान उन्हीं का दिया हुआ है। ये नहीं पता था कि एक दिन उनके सौवें जन्मदिन पर इस तरह से आयोजन होगा। उन्होंने अकादेमी का इसके लिए आभार जताया। प्रदेश के विख्यात साहित्यकार नन्द भारद्वाज ने कहा कि सुदामा ने राजस्थानी भाषा को साहित्य के क्षेत्र में स्थापित किया। 1966 में प्रथम कृति “मुळकती काया, मुळकती धरती” ने आम आदमी काे प्रभावित किया। उनकी कहानियों में वो सब है, जो हमारे आसपास घटित होता है। सुदामा ने अपनी कहानियों में महिलाओं की पीड़ा को उजागर किया। साहित्य अकादेमी के साहित्य संपादक ज्योतिकृष्ण वर्मा ने कहा कि सुदामा जैसे विख्यात और सरल साहित्यकार पर अकादेमी ने आयोजन किया है। सुदामा से राजस्थानी भाषा के साहित्यकारों को सीखना चाहिए। इस मौके पर उन्होंने अरुणा व्यास के लिखे मोनोग्राफ की जानकारी भी दी। उद्घाटन सत्र का संचालन साहित्य अकादेमी नई दिल्ली के राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के सदस्य संजय पुरोहित ने किया।
अरुणा व्यास ने लिखा सुदामा पर मोनोग्राफउद्घाटन सत्र में ही जयपुर की विख्यात साहित्यकार अरुणा व्यास के लिखे मोनोग्राफ का विमोचन किया गया। ये मोनोग्राफ अन्नाराम सुदामा पर लिखा गया है, जिसमें राजस्थानी भाषा में सुदामा की कहानी, कविता सहित अनेक विषयों को एक साथ संग्रहित किया गया है।
कहानियों में लोकपहले सत्र में अन्नाराम सुदामा की कहानियों के बारे में चर्चा की गई। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए राजस्थानी भाषा के साहित्यकार भंवरलाल भ्रमर ने कहा कि सुदामा ने समाज के हर वर्ग की पीड़ा को अपनी कहानियों से उजागर किया। इसी सत्र में अरुणा व्यास ने पत्रवाचन करते हुए उनकी कई कहानियों का जिक्र करते हुए कहा कि ये कहानियां आज भी प्रासंगिक है। महिलाओं के साथ ग्रामीण क्षेत्र में बालिका शिक्षा पर भी उन्होंने जमकर कटाक्ष किए, जिससे लोग सोचने के लिए मजबूर हुए। अशोक कुमार व्यास ने अपने पत्रवाचन में सुदामा की कहानियों से रूबरू करवाया। व्यास ने कहा कि सुदामा ने आसपास जैसा देखा है, वैसा ही लिखा है।
कविता संसार पर चर्चादूसरे सत्र में राज्य के विख्यात साहित्यकार व लेखक डॉ. राजेश कुमार व्यास ने कहा कि सुदामा की कविताओं के हर शब्द में ज्ञान छिपा हुआ है। उन्होंने कहा कि अगर आप सुदामा की एक कविता पढ़ेंगे तो ऐसा लगेगा कि आपको उनकी हर कविता को पढ़ना ही पड़ेगा। उनकी कविता में एक लय है और अभिनय का जबर्दस्त वर्णन हैं। इसी सत्र में पत्रवाचन करते हुए सूरतगढ़ के साहित्यकार हरिमोहन शर्मा “रुंख” ने कहा कि “पिरोळ में कुत्ती ब्याई” कविता पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि हमारे आसपास कितना साहित्य बिखरा हुआ है, जिसे शब्दों में पिरोकर हम समाज को दिशा दे सकते हैं। साहित्यकार राजूराम बिजारणियां ने अन्नाराम सुदामा को राजस्थानी का प्रेमचंद बताया। न्होंन कहा कि उनकी रचनाओं में संवेदनाएं साफ नजर आती है। इस सत्र का संचालन सविता जोशी ने किया।
व्यक्तित्व पर चर्चापहले दिन के तीसरे व अंतिम सत्रमें उनके व्यक्तित्व पर चर्चा की गई। इस दौरान सुदामा के पुत्र व राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार मेघराज शर्मा ने कहा कि वो सुदामा की तरह रहते थे, इसलिए उनका नाम सुदामा हो गया। उनका नाम ही उनके व्यक्तित्व को प्रदर्शित करता है। इस मौके पर अनुपमा शर्मा ने बताया कि “दादा” कैसे अपना जीवन जीते थे। वे सरल और सहज होने के साथ गंभीर थे। इसी सत्र में मनमोहन सिंह यादव ने भी पत्रवाचन किया। यादव ने बताया कि उनके व्यक्तित्व का असर आज भी साफ नजर आता है। हम जन्मशती वर्ष में भी उनको याद कर रहे हैं। इस सत्र का संचालन साहित्यकार हरीश बी. शर्मा ने किया।