टुडे राजस्थान न्यूज़ (अज़ीज़ भुट्टा )
गंगा शहर 24 दिसंबर । तेरापंथ भवन गंगाशहर में तेरापंथी सभा द्वारा एक कार्यशाला की आयोजना मुनिश्री श्रेयांसकुमार जी के सान्निध्य में हुई। प्रेक्षा ध्यान- कार्यशाला में “स्वयं के द्वारा स्वय का उद्धार” पर अपने विचार व्यक्त करते हुए मुनिश्री चैतन्य कुमार “अमन” ने कहा- मन को साधने के लिए जरूरी है- साधना । मन को साधने के लिए जरूरी है- अमन बनना। प्रेक्षा ध्यान के प्रयोगों से जीवन में परिष्कार संभव है। प्रेक्षाध्यान स्वयं के द्वारा स्वयं का उद्धार करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। प्रेक्षा ध्यान भविष्य की कल्पना और अतीत की स्मृतियों में नहीं बल्कि वर्तमान में जीना सिखाता है। भगवान महावीर ने कहा था कि स्वयं का कल्याण व्यक्ति के स्वयं के द्वारा ही संभव है। दूसरा मार्ग ही दिखा सकता है किन्तु मंजिल पाना है तो स्वयं को ही चलना पड़ता है। जैसा कि भूख-प्यास को शांत करने के लिए खुद को ही खाना व पानी पीना होता है। दूसरों के खाने-पीने से व्यक्ति की स्वयं की भुख-प्यास शान्त नही हो सकती। यह जैन धर्म का अकाट्य सिद्धान्त है।
मुख्य वक्ता वरिष्ट उपासक श्री निर्मल नौलखा ने अपने वक्तव्य में कहा – आल्म कर्तृत्ववाद जैन धर्म का प्रमुख सिद्धान्त है। प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा ही सुख अथवा दुख का कारण बनती है। व्यक्ति जिस प्रकार का कर्म करता है उसी के अनुसार उसका परिणाम होता है। कर्म का सिलसिला निरन्तर चलता रहता है। ऐसा प्रेक्षा के प्रयोग व्यक्ति को आात्म शान्ति की अनुभूति कराते है। सूर्य के प्रकाश के समक्ष अंधकार टिक नहीं सकता वैसे ही संवर और निर्जरा की साधना से कर्मो को समाप्त किया जा सकता है।
मुनिश्री श्रेयांस कुमार जी ने भाई जी माहाराज चम्पालालजी स्वामी की आज पुण्यतिथि पर अपनी श्रद्धा समर्पित करते हुए गीत का संगान किया। प्रशिक्षक हड़मान मल दुगड ने मंगलाचरण किया। कार्यक्रम का संचालन तेरापंथी सभा के मंत्री रतन छलाणी ने किया। सभा अध्यक्ष अमर चंद सोनी विशेष रूप से उपस्थित थे। इस अवसर सामुहिक एकलठाणा तप का प्रत्याख्यान करवाया गया।