महर्षि एक विराट व्यक्तित्व, विचार भी कम पड़ते हैं- डॉ ज्वलंत कुमार शास्त्री

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टुडे राजस्थान न्यूज़ ( अज़ीज़ भुट्टा )
महर्षि एक विराट व्यक्तित्व, विचार भी कम पड़ते हैं- डॉ ज्वलंत कुमार शास्त्री
बीकानेर 01 अक्टूबर । आर्ष न्यास के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम के प्रथम दिन आज आरएसवी ग्रुप ऑफ स्कूल्स के प्रबंधन तथा पर्यावरण पोषण यज्ञ समिति के पदाधिकारीयो ने संपूर्ण भारत से पधारे विद्वानों का भव्य स्वागत माल्यार्पण तथा गायत्री मंत्र से सज्जित दुपट्टा पहना कर किया। कार्यक्रम के उद्घाटन एवं परिचय के पश्चात परिचर्चा के प्रथम सत्र का संचालन करते हुए आचार्य रवि शंकर ने सत्र के अध्यक्ष लालेश्वर महादेव मंदिर के अधिष्ठाता स्वामी विमर्शानंद महाराज से कार्यक्रम प्रारंभ करने की अनुमति प्राप्त करने के पश्चात आचार्य रणजीत् को आमंत्रित किया अपने उद्बोधन में महर्षि दयानंद के विराट व्यक्तित्व पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि आपके बहुआयामी व्यक्तित्व को प्रकट करने के लिए विचार भी कम पड़ जाते हैं। आचार्य शीतल ने महर्षि के राष्ट्रवाद पर प्रकाश डाला तथा भारतवर्ष के सांस्कृतिक और शैक्षणिक पतन एवं उसके उत्थान में महर्षि के योगदान के बारे में विस्तार से चर्चा की आपने सत्यार्थ प्रकाश के आधार पर नारी उत्थान तथा स्त्री शिक्षा की आवश्यकता पर अपने विचारों को बड़े ही सहज ढंग से उपस्थित प्रबुद्ध जनों के समक्ष रखा। आपने कहा कि स्त्री ही घर की व्यवस्थापक है, घर की शिल्प कला स्त्रियों को ही करनी चाहिए एवं प्रत्येक स्त्री को समय को पहचान कर अपने परिवार को संस्कारित करना चाहिए।


डॉ ज्वलंत कुमार शास्त्री ने अपने ओजस्वी उद्बोधन में आर्य समाज के समकालीन ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज देव समाज के अस्तित्व और महर्षि के योगदान पर विशेष प्रकाश डाला। आपने बताया कि महर्षि ने अपने जीवन के 14 वर्ष योग साधना की तथा राष्ट्र शब्द की वेदों के संदर्भ विस्तार से व्याख्या की। महर्षि ने बहु विवाह, सती प्रथा, छुआछूत आदि का वेदों के आधार पर प्रमाण प्रस्तुत करते हुए विरोध किया तथा विधवा विवाह का समर्थन किया। स्वामी विमर्शानंद जी ने कहा कि संपूर्ण ब्रह्मांड एक रिदम से चल रहा है परंतु मनुष्य मात्र ही अपनी रिदम को तोड़ रहा है। मनुष्य बंधन मुक्त है ईश्वर ने हमारा चयन किया है। हम में ज्ञान का, पुण्य का भाव उत्पन्न किया है। आज राष्ट्र से ऋषितत्व, गुरुतत्व तथा मनुष्यता विलुप्त होती जा रही है।


परिचर्चा के द्वितीय सत्र की अध्यक्षता डॉ ज्वलंत कुमार शास्त्री ने की। इस सत्र में प्रमुख वक्ता विमल शास्त्री, स्वामी श्रेयस्पति जी, आचार्य रवि शंकर जी, सीए कल्पेश जी और आचार्य कर्मवीर मेधार्थी रहे। विशेष वक्ता के रूप में बीकानेर पश्चिम के विधायक जेठानंद व्यास ने भी उपस्थित जनों को संबोधित किया। स्वामी श्रेयस्पति ने महर्षि को बहु आयामी व्यक्तित्व, निर्भीक और निडर व्यक्तित्व बताया। आचार्य रवि शंकर ने महर्षि को आध्यात्मिक संत, वेदों का ज्ञाता तथा आत्म बल से परिपूर्ण व्यक्तित्व बताया। सीए कल्पेश जी के विचारों में महर्षि तार्किक पंडित थे जिन्होंने सदैव अपनी बात को विभिन्न शास्त्रार्थ के समय तर्क के आधार पर सिद्ध किया। आचार्य कर्मवीर ने बताया कि महर्षि एक कर्मठ व्यक्तित्व थे जो निरंतर 16 घंटे शास्त्रार्थ, प्रवचन तथा अपने कार्यों में व्यस्त रहते थे। जेठानंद व्यास ने महर्षि के पद चिन्ह पर चलने, समाज में फैली हुई कुरीतियां को त्यागने तथा विद्वेष की भावना को मिटाने पर बल दिया। बीकानेर पधारने पर सभी विद्वानों का स्वागत करते हुए विधायक ने इस प्रकार के कार्यक्रमों को समाज के लिए अत्यंत उपयोगी बताया।

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