टुडे राजस्थान न्यूज़ (अज़ीज़ भुट्टा )
ओजस्वी कवयित्री प्रमिला गंगल का महा प्रयाण
बीकानेर , 18 दिसम्बर। ब्रज, हिंदी और राजस्थानी की वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती प्रमिला गंगल का स्वर्गवास 18 दिसंबर को हो गया। उनका इलाज करीबन एक माह से जयपुर में चल रहा था, कल रात को उन्होनें अंतिम सांस ली। उनकी पार्थिव देह भोर में बीकानेर पहुंची। उनकी अंतिम यात्रा उनके निवास स्थान सी-46 गांधी कॉलोनी, नागणेचेजी रोड से शिवबाड़ी मुक्तिधाम पहुंची जहां उनके बड़े पुत्र शशांक ने मुखाग्नि दी।
शवयात्रा में नगर के प्रतिष्ठित गणमान्य, समाजसेवी, साहित्यकार बड़ी संख्या में उपस्थित थे। मुरारीलाल गुप्ता (स्वतन्त्रता सेनानी) की पुत्री और जवाहरलाल गंगल (से. नि. लेखाधिकारी) की पत्नी, ओजस्वी कवयित्री के निधन का समाचार साहित्य जगत में आग की तरह फैल गया। जोधपुर से वरिष्ठ साहित्यकार भवानीशंकर व्यास विनोद ने शोक संदेश भेजते हुए कहा कि देखते एक वरिष्ठ कवयित्री, एक निर्भीक एवं बुलंद रचनाकार, राष्ट्रीयता के स्वरों तथा महिलाओं के अधिकारों की प्रबल हिमायती, अनेक विधाओं में समान गति से लिखने मे सक्षम व सदैव सक्रिय एवं सदाबहार रहने वाली महिला हमारे बीच नहीं रही। क्रूर नियति को शायद यही मंजूर था। नवकिरण सृजनमंच के अध्यक्ष व्यंग्यकार डॉ.अजय जोशी ने कहा कि एक निर्भीक और दबंग साहित्यकार के रूप में प्रमिलाजी की पहचान थी उनके निधन से साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति हुई है। शब्दरंग साहित्य एवं कला संस्थान के राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी परिवार से जुड़ी कवयित्री ने बड़े-बड़े मंचों पर अपने ओजमयी काव्यपाठ से अपनी और बीकानेर की पहचान बनाई। मुक्ति संस्था के सचिव साहित्यकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि प्रमिलाजी की रचनाओं में प्रभावी प्रस्तुति और लयबद्धता हुआ करती थी। प्रेरणा प्रतिष्ठान के प्रेमनारायण व्यास ने बहुमुखी प्रतिभा की धनी बताया, जिनमें धैर्य भरा था।
आपकी छन्द मुक्त, छन्द युक्त, प्रकाशित पुस्तकें थी
बेटी की पाती (1987), अनकहे दर्द (2000, 2010), करवट बदलेगी (2006), मैं धरती हूँ (2006), अन्तर्द्वन्द्व (2009), आह्वान, ब्रज सुधा (2011), अपने हाइकू (2019), अपने आसपास (2019)। आपके निधन से साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति हुई है।