दिल्ली – अनंत ज्योति में विलीन हुई चैतन्य रश्मि शासनमाता साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा
अंत समय तक उन्हें प्राप्त होता रहा आचार्य महाश्रमण का आध्यात्मिक आलम्बन
अंतिम दर्शन को उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब
4ः00 बजे निकली बैंकुठी यात्रा में लहराया आस्था का सागर, पार्थिव शरीर पंचतत्त्व में विलीन
भारत के राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, गृहमंत्री सहित अनेक गणमान्यों ने अर्पित की श्रद्धांजलि।
शासनमाता के अंतिम दर्शन को पहुंचे केन्द्रीय मंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल
छत्तरपुर (दिल्ली), 17 मार्च। असाध्य को साधने में माहिर, तीन-तीन आचार्यों के मंगल आशीषों से अभिसिंचित, अपने समर्पण, श्रद्धा, निष्ठा, कर्त्तव्यपरायणता, वैदुष्य कला में पारंगत, विनम्रता, करुणा, दयालुता के कारण तेरापंथ धर्मसंघ में असाधारणता को प्राप्त शासनमाता के अलंकरण से विभूषित साध्वी कनकप्रभा ने अपने वर्तमान अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के आध्यात्मिक आलम्बन में गुरुवार को अध्यात्म साधना केन्द्र के अनुकंपा भवन में प्रातः लगभग 8.45 बजे इस असार संसार को छोड़ अनंत पथ पर मोक्ष प्राप्ति के लिए गतिमान हो गईं।
असाध्य बीमारी को साधने में जुटी शासनमाता के देवलोकगमन की खबर पूरे धर्मसंघ को शोक की लहरों में डूबा गई। तेरापंथ समाज मानों आज अपनी ममतामयी, करुणामयी शासनमाता के महाप्रयाण के बाद अनाथता की अनुभूति कर रहा था। देवलोकगमन की खबर देश-दुनिया में जंगल की आग की तरह फैली तो देखते-देखते ही अध्यात्म साधना केन्द्र जनाकीर्ण बन गया। शासनमाता के पार्थिव शरीर को श्रद्धालुओं ने अनुकंपा भवन से अंतिम दर्शन के लिए वर्धमान समवसरण में स्थापित किया।
गुरुवार को प्रातः से ही उनके स्वास्थ्य में निरंतर गिरावट नजर आ रही थी। नित्य की भांति युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी उन्हें निकट सन्निधि व चित्त समाधि प्रदान करने के लिए पधार गये थे। आचार्यश्री द्वारा उन्हें निरंतर आर्षवाणी का श्रवण कराया जा रहा था। लगभग 8.45 बजे उन्होंने अंतिम श्वास ली और शरीर का परित्याग कर दिया। डॉक्टरों की पुष्टि के उपरान्त आचार्यश्री ने उनके महाप्रयाण की घोषणा करते हुए शासनमाता साध्वीप्रमुखाजी के लिए पंचदिवसीय आध्यात्मिक अनुष्ठान करने की घोषणा भी की। उपस्थित हजारों श्रद्धालु अपनी शासनमाता सजल नयनों से अंतिम दर्शन कर रहे थे। श्रद्धालुओं के छलकते नेत्र उनके भाव विह्वल हृदय भावों को पुष्ट कर रहे थे।
22 जुलाई सन् 1942 को राजस्थान के नागौर जिले के लाडनूं के श्री सूरजमल बैद परिवार में आपका जन्म हुआ। प्रारम्भ से ही अध्यात्म पथ पर गति करने की अभिलाषा रखने मुमुक्षु कला ने 15 वर्ष की अल्पायु में तेरापंथ धर्मसंघ की पारमार्थिक शिक्षण संस्था में प्रवेश प्राप्त किया और 19 वर्ष की अवस्था में 8 जुलाई सन् 1960 को तेरापंथ धर्मसंघ के नवमें अधिशास्ता आचार्य तुलसी से जैन दीक्षा स्वीकार की। अपनी लगन, सरलता, ऋजुता, संघ निष्ठा, आचार निष्ठा, व्यापक सोच, विशिष्ट कर्तृत्व, वैदुष्य कला से अपने आचार्यों का विश्वास प्राप्त किया। तीस वर्ष की आयु में ही आचार्यश्री तुलसी ने 12 जनवरी 1972 गंगाशहर में साध्वी कनकप्रभा को तेरापंथ धर्मसंघ के साध्वी समुदाय के आठवीं साध्वीप्रमुखा के रूप में प्रतिष्ठित किया। आपने अपने जीवनकाल में 80 हजार से अधिक किलोमीटर की पदयात्रा की। हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत, गुजराती भाषा में अनेक कृतियों का सृजन करने के साथ लगभग 85 से अधिक पुस्तकों का संपादन कार्य भी किया। इस प्रकार आपने अपनी प्रतिभा से साहित्य जगत को अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। तेरापंथ धर्मसंघ में 500 से अधिक साध्वियों के कुशल नेतृत्वकर्ता के साथ नारी जगत की मानों वे वह सुमेरू पर्वत के समान थीं। अपने गुरुओं से कभी सौ में से सवा सौ नम्बर प्राप्त किया तो कभी तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखा बनकर अपने पद को विभूषित किया। अपने दीक्षा के 50 वर्षों की सम्पन्नता पर लाडनूं में आयोजित अमृत महोत्सव के दौरान युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी द्वारा आपको शासनमाता का अलंकरण प्रदान किया। आचार्यश्री महाश्रमणजी के कुशल नेतृत्व में स्वास्थ्य लाभ के लिए शासनमाता दिल्ली पधारीं और यात्रायित युगप्रधान आचार्यश्री को बीमारी की असाध्य होने का पता चला तो आचार्यश्री महाश्रमणजी ने लम्बे-लम्बे विहार कर दिल्ली पधारे और उन्हें दर्शन देने के साथ ही उन्हें नित्य आध्यात्मिक लाभ प्रदान करने के लिए अपने साथ छत्तरपुर स्थित अध्यात्म साधना केन्द्र के अनुकंपा भवन में विराजित किया था।
सायं लगभग चार बजे निकली बैंकुठी यात्रा में मानों आस्था का सागर हिलोरें ले रहा था। हाजरों-हजारों सजल नेत्र अपनी शासनमाता को अंतिम विदाई दे रहे थे। वर्धमान समवसरण से उठी बैंकुठी अध्यात्म साधना केन्द्र अनुकंपा भवन के निकट ही स्थित बने स्थान में पहुंची। जहां सायं लगभग 5. 45 बजे शासनमाता को मुखाग्नि दी गई। इस प्रकार तेरापंथ धर्मसंघ की अष्टम साध्वीप्रमुखा पंचतत्त्व में विलीन हो गईं।
शासमाता के देवलोकगमन की जानकारी प्राप्त होते ही भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, गुजरात के गृहमंत्री श्री हर्ष संघवी सहित अनेक राजनैतिक महानुभावों ने भी संदेशों व ट्वीट के माध्यम से अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। वहीं केन्द्रीय मंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल अंतिम दर्शन को पहुंचे।