कविता में जो आम आदमी को स्थान मिलना चाहिए परन्तु बीते कुछ सालों में कविता में बाजीगरी पैदा करने की कवायद होने लगी है: जोशी
बीकानेर 21 मार्च। शब्दरंग साहित्य एवं कला संस्थान के तत्वावधान में सोमवार को विश्व कविता दिवस के अवसर पर नयाकुआँ स्थित शिव-निवास में विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया । “कविता की लोकधर्मी परम्परा” विषय पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने की । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ अजय जोशी थे । संगोष्ठी के मुख्य वक्ता साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार रहे । कार्यक्रम का संचालन डॉ नासिर जैदी ने किया ।
इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कवि- कथाकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि कविता में आम आदमी को जो स्थान मिलना चाहिए परन्तु बीते कुछ सालों में कविता में बाजीगरी पैदा करने की कवायद होने लगी है, जोशी ने कहा कि कविता में जहाँ कवितापन गायब हुआ तो लोक-समाज भी कविता से बाहर निकलकर आत्मकेन्द्रित कविता रह गई है । जोशी ने कहा कि अभी भी छंद की कविता और छंद मुक्त कविताओं की बहस लगातार बढ़ रही है उन्होंने कहा कि कौनसी कविता से घाटा ज्यादा-फायदा कम हुआ है यह बहस का मुद्दा है । जोशी ने कहा कि हमारे समय में साहित्य में कविता जरूरी विधा है जिसमें कम शब्दों में विषय-वस्तु को विस्तार मिलता है । जोशी ने कहा कि यह भी सच्चाई है कि अगर किसी विधा में सबसे अधिक लिखा जा रहा है तो वह कविता ही है । उन्होंने विश्व कविता दिवस के अवसर पर देश के कवियों और कविता के पाठकों को बधाई दी।
मुख्य वक्ता कवि-कथाकार राजाराम स्वर्णकार ने कविता को एक आदर्श जीवन दर्शन बताया उन्होंने कहा कि कविता में मजदूर, सर्वहारा एवं समाज में व्याप्त विद्रुपताओं को कविता में प्रस्तुत करना ही लोकधर्मी कविता बनाता है। उन्होंने कहा कि कविता कोरा शब्दों का जोड़-तोड़ नहीं है। लोक की कविता ने बड़े-बड़े आन्दोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्वर्णकार ने कहा कि आजादी के आन्दोलन और आपातकाल के समय लोकधर्मी कविता की महत्वपूर्ण उपलब्धि रही है।
मुख्य अतिथि सम्पादक-व्यंग्यकार डॉ अजय जोशी ने कहा कि कविता विचारों और भावों को संप्रेषित करने का प्रभावी माध्यम है। हमारे वेद और पुराणों की ऋचाएं भी पद्य रूप में ही थी। पुरातन वाचिक परंपरा के माध्यम से राजनीति, कूटनीति रणनीति आदि को पद्य में ही व्यक्त किया गया है। गीता और रामायण की लयबद्धता के कारण ही ये हज़ारों वर्षों से जन-जीवन का अंग बनी हुई है। आज भी कविता साहित्य की सर्वाधिक लोकप्रिय विधा है। समय के साथ कविता के शिल्प और स्वरूप में भी परिवर्तन हो रहा है। संयोजकीय व्यक्तव्य देते हुए पत्रकार और शाइर डॉ. नासिर ज़ैदी ने इस अवसर पर कहा कि कविता साहित्य की आबरू है। इसका दामन ज़िन्दगी की शानदार नज़ाकतों और बेशुमार लताफ़तों से लबरेज़ है। अगर साहित्य से कविता को हटा दिया जाए तो साहित्य की ख़ूबसूरती ही ख़त्म जो जाएगी।
कार्यक्रम में कवि-संस्कृतिकर्मी चन्द्रशेखर जोशी, एन.डी.रंगा, ऋषि अग्रवाल, हनुमान कच्छावा, गौरीशंकर सोनी, मस्त पवन सहित अनेक गणमान्यजनों ने विचार व्यक्त किए।