बीकानेर 6 जुलाई। नई शिक्षा नीति के चलते एवं विश्व स्तर पर भाषा वैज्ञानिकों के सर्वमान्य निर्णय के अनुसार बालकों को प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में ही देनी चाहिए। इसी संदर्भ में प्रदेश के मुख्य मंत्री अशोक गहलोत एवं शिक्षामंत्री डॉ बी.डी. कल्ला को पत्र लिखकर राजस्थानी युवा लेखक संघ के प्रदेशाध्यक्ष एवं राजस्थानी मान्यता आंदोलन के प्रवर्तक कमल रंगा ने मांग की है कि प्रदेश में प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम मातृभाषा राजस्थानी में हो। इसके लिए राज्य स्तर शीघ्र निर्णय लिया जाना चाहिए।
रंगा ने इस संदर्भ में बताया कि देश मंे इस बाबत कार्यवाही प्रारंभ हो गयी है और उत्तराखंड राज्य देश का पहला ऐसा राज्य बन गया जिसने अपने प्रदेश में बालकों के हित में प्राथमिक शिक्षा प्रदेश की मातृभाषा में देने का निर्णय ले लिया है। देश के अन्य प्रदेशों मंे भी कार्यवाही चल रही है। रंगा ने कहा कि राजस्थान सरकार द्वारा भी जब वर्तमान में जन लोककल्याणकारी अनेक निर्णय देश में प्रथम पहल करते हुए लिए है। ऐसी स्थिति में भाषा जैसे संवेदनशील विषय एवं बालक ही भविष्य है उनके उज्जवल भविष्य के लिए इस बाबत शीघ्र निर्णय सरकार को लेना चाहिए।
रंगा ने राजस्थानी भाषा के संदर्भ में ही प्रदेश की दूसरी राजभाषा राजस्थानी बनाने की पुनः मांग करते हुए कहा कि राजस्थानी को प्रदेश की दूसरी राजभाषा बनाने के लिए भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से विधिक प्रावधान है। ऐसे में किसी भी प्रदेश में एक नहीं दो से अधिक भी राजभाषा बन सकती है। देश में कई प्रदेशों में एक से अधिक प्रदेश की राजभाषाएं है।
रंगा ने यह भी स्पष्ट किया कि राजस्थानी को दूसरी राजभाषा बनाने से निश्चित रूप से प्रदेश के नौजवानों को रोजगार मिलेगा। भाषा अपने वैभव के साथ-साथ रोटी-रोजी से जुड़कर प्रदेश के विकास में अपना योगदान देगी। वैसे भी मुख्यमंत्री का सकारात्मक एवं सही सोच प्रदेश के नौजवानों को ही प्राथमिक स्तर पर रोजगार देने का है। ऐसे सोच को सार्थक बनाने में राजस्थानी को दूसरी राजभाषा घोषित करना एक अच्छी पहल होगी। जिससे प्रदेश, देश और विदेश में रहने वाले करोड़ों राजस्थानियों की जनभावना और जनसंवेदना का सम्मान होगा।