जैन धर्म, इतिहास, नियम, कायदों व मर्यादाओं से हुए लोग साक्षात
बीकानेर, 24 जुलाई। जैनाचार्य गच्छाधिपति जिनमणिप्रभ सूरिश्वरजी, धर्मधुरंधरजी, भुवनचन्द्रजी म.सा.के मंगल आशीर्वाद से बीकानेर में चातुर्मास कर रही जैन श्वेताम्बर श्री खरतरगच्छ, तपागच्छ व पाश्र्वचन्द्र गच्छ की साध्वीवृृंद के सान्निध्य में सकलश्री संघ के सहयोग से रविवार को कोचरों में ’’शासन स्पर्श’ का अनुकरणीय, प्रेरणादायक कार्यक्रम आयोजित किया गया।
कार्यक्रम में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ, खरतरगच्छ, तपागच्छ, पाश्र्वचन्द्र गच्छ, साधुमार्गी जैन संघ, शांति क्रांति संघ सहित सकल श्रीसंघ के श्रावक-श्राविकाओं ने भागीदारी निभाते हुए जैन समाज की एकता का अनूठा उदाहरण पेश किया। बीकानेर में प्रवासरत सभी जैन धर्म के विभिन्न समुदायों का प्रतिवर्ष होने वाले उदयरामसर मेले, महावीर जयंती के बाद यह पहला विभिन्न जैन समाज के अनुयायियों का अनूठा सार्वजनिक कार्यक्रम था।
करीब तीन घंटें संगीत के साथ धारा प्रवाह चले कार्यक्रम में जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ की साध्वीश्री मृृगावती जी.मसा. ने एक कविता के अंश सुनाते हुए कहा कि ’’पूछते है नक्षत्र ऐ ठंडी हवा हमको बता’’ सुनाते हुए कहा कि जैन शासन के आसन को अंतर आत्मा में प्रकट करें। जैन समाज की एकता व प्रतिष्ठा के लिए ऐसे कार्यक्रम अनुकरणीय व प्रेरणादायक रहते है। कार्यक्रम की एक बात को ही जीवन में अहोभाव से अंगीकर कर सच्चे जैनी बनें। जैन श्वेताम्बर तपागच्छ संघ की साध्वीश्री सौम्यप्रभा ने कहा कि परमात्मा तीर्थंकरों द्वारा स्थापित जैन धर्म में साधु, साध्वी, श्रावक-श्राविकाएं चार प्रमुख स्तम्भ है। साधु-साध्वियों के 5-5 महाव्रत तथा श्रावक-श्राविकाओं के 12 नियम निर्धारित है। सभी जैन समाज के सिद्धान्तों, नियमों व मर्यादाओं को पालन करते हुए जिन शासन की प्रतिष्ठा में समर्पित रहे। देव, गुरु व धर्म की परम्पराओं का आपसी एकता के साथ जिन शासन के गौरव को बढ़ावें।
’शासन स्पर्श कार्यक्रम में सुरेश भाई ने संवाद के माध्यम से तथा मुंबई के संगीतकार भाविक भाई ने प्रेरणादायक व चेतना तथा जैन धर्म की शोभा में श्रीवृृद्धि करने वाले गीतों के माध्यम से उपस्थित करीब दो-ढाई हजार श्रावक-श्राविकाओं को जैन धर्म के सिद्धान्तों, नियमों व कायदों से अवगत करवाया। उन्होंने अनेक उदाहरणों के माध्यम से बताया कि जैन धर्म के संरक्षण व संवर्द्धन के लिए अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने बलिदान दिए वे वंदनीय है। ’’जागों जैनी जागो’’ के केवल नारे पर ही निर्भर नहीं रहकर इसको कार्य व्यवहार में लाएं ।
उन्होंने जैन धर्म के संरक्षण, संवर्द्धन व रक्षा के लिए कुर्बानी देने वाले जैन-अजैनी श्रावक-श्राविकाओं का स्मरण दिलाते हुए कहा कि जैन शासन को युगों-युगों तक कायम रखने के लिए हर तरह के त्याग करना सही मायने में धर्म की पालना करनी है। धर्म की रक्षा के लिए सर्वस्व न्यौछावर करना पड़ें तो भी जैन धर्मावलम्बियों को तैयार रहना चाहिए। अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए जीव दया करते हुए मूक प्राणियों व जीव मात्र की रक्षा के लिए समर्पित रहना। संगीतकार भाविक भाई ने ’’मेरा शासन भी मेरा ईमान’’, आदि अनेक प्रेरणादायक गीतों के माध्यम से जैन धर्म के सिद्धान्तों कीे अक्षणु रखने का संदेश दिया।
जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ, तपागच्छ संघ व पाश्र्वचन्द्र गच्छ के संयुक्त तत्वावधान में हुए कार्यक्रम में सुरेश भाई व भाविक भाई का स्मृृति चिन्ह से श्री सुगनजी महाराज का उपासरा ट्रस्ट के मंत्री रतन लाल नाहटा, चातुर्मास व्यवस्था समिति के संयोजक निर्मल पारख, जैन श्वेताम्बर तपागच्छ संघ के रिखबचंद सिरोहिया, विजय कोचर, सुरेन्द्र बद्धाणी, रवि रामपुरिया आदि ने सम्मानित किया। आयोजन के महत्व को जितेन्द्र कोचर ने उजागर किया।