बीकानेर,07 अगस्त। सुजानदेसर स्थित मीराबाई धोरा मंदिर के पास भागीरथ नंदनी पार्क में चल रही नानी बाई रो मायरो के दूसरे दिन रविवार को गोवत्स आशीष महाराज ने नानी बाई और नरसी जी के जीवन चरित्र का संपूर्ण चित्रण संगीतमय कथा के माध्यम से किया। विवाह में नरसी जी ना आए इसलिए योजना बनाकर भारी भरकम सामान की सूची तैयार की गई। गोवत्स आशीष महाराज ने कहा कि जिसके साथ त्रिलोकी का नाथ हो, उसके कोई काम कभी नहीं रुकते, यह कथा हमें बताती है कि भगवान पर भरोसा करने वाले का कोई काम ना कभी रुका है और ना कभी रुकेगा। इसलिए धर्म की रक्षा के लिए आप यह मत सोचो की कैसे करना है और 1या करना है। आप तो बस धर्म का कर्म करो, फल ईश्वर के हाथ में है और ईश्वर हमेशा देता ही है, लेता कुछ नहीं है। गोवत्स आशीष महाराज ने बताया कि नानी बाई की बेटी का जैसे ही विवाह तय हुआ, सबसे पहले भगवान श्री गणेश के नाम कुंकुपत्री लिखी गई। इसके बाद जैसे ही जूनागढ़ का नाम आया। नानीबाई की सास और ननंद के माथे पर बल पड़ गए। वह नहीं चाहते थे कि मायरे में नरसी जी आए और अपने साथ संतो का टोला लेकर पहुंच जाए। 1योंकि नरसी जी के पास जो भी धन था, वह तो संतो की सेवा और धर्म-कर्म में लगा चुके थे। अब उनके पास देने को कुछ था नहीं, ऐसे में संतो की संगत के अलावा उनके पास बचा कुछ नहीं था। इस प्रकार सास और ननद को विवाह अवसर पर चिंतित देख गांव की बूढी महिला ने कारण पूछा। इस पर उन्होंने सारी बात बताई। इस पर कहते हैं कि वृद्धा ने उपाय सुझाया कि मायरे में इतना मांग की वो भर ही ना सके और जब नहीं भर सकेगा तो लाज शर्म के मारे वह आएगा ही नहीं और तु6हारी जात-बिरादरी में किरकिरी भी नहीं होगी। इस सुझाव को मानकर सास ने एक भारी भरकम सोने, चांदी, रुपए और कपड़ों सहित अन्य सामान की सूची बनाकर भेजने का निर्णय हुआ।
गोवत्स आशीष महाराज ने गाय के महत्व को प्रतिपादित करते हुए वर्तमान समय में गायों में फैल रहे ल6पी डिजीज पर गहरी चिंता व्य1त की है। गोवत्स ने उपस्थित श्रद्धालु महिलाओं व पुरुषों से कहा कि वे जितना हो सके भगवान से उतनी अरदास करें कि है नाथ, अब तू ही सहारा है गौ माता का, माता को अब आप ही इस काल से बचा सकते हैं।