गंगाशहर, बीकानेर 28 अगस्त। भगवान महावीर ने आगार धर्म और अनगार धर्म का वर्णन किया। साधु पांच महाव्रत के पालक होते हैं। श्रावक के लिए बारह व्रत बताए गए हंै। आध्याम को साधना में व्रत का महत्त्व होता है। अणुव्रत दिवस पर जीवन में व्रतों को धारण करने की प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए। उपरोक्त विचार मुनि शांतिकुमार जी ने अणुव्रत चेतना दिवस पर धर्मसभा में व्यक्त किए। तेरापंथ भवन में पर्युषण महापर्व के अंतर्गत रविवार को मुनि श्री शांतिकुमार जी एवं मुनि जितेंद्र कुमार जी के सान्निध्य में अणुव्रत चेतना दिवस मनाया गया। मुनि जितेंद्र कुमार जी ने मुख्य उद्बोधन देते हुए कहा कि- अणुव्रत यानी छोटे-छोटे व्रत। अध्यात्म साधना के क्षेत्र में व्रतों की पालना महत्वपूर्ण होती है। व्रत असंयम से संयम की ओर ले जाने वाले होते है। आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत के द्वारा मानव को सही अर्थ में मानव बनने का दिशा बोध दिया। पर्युषण महापर्व में मानों अभी अध्यात्म का सीजन चल रहा है। श्रावक-श्राविकाओं को इस काल में अधिक से अधिक धर्माराधना करनी चाहिए। कार्यक्रम में मुनि श्रेयांश कुमार जी ने अणुव्रत गीत का संगान किया। मुनि अनुशासन कुमार जी ने अणुव्रत के नियमों की व्याख्या की। मुनि अनेकांत कुमार जी ने धर्म के लक्षण बताते हुए सुमधुर गीत की प्रस्तुति दी।