बीकानेर, 30 सितम्बर। रांगड़ी चौक के सुगनजी महाराज के उपासरे में साध्वीश्री मृगावती, सुरप्रिया व नित्योदया के सान्निध्य में शनिवार को भक्तामर पूजन व अभिषेक विधान में 37 व 38 वीं गाथा, यंत्र के साथ भगवान आदिनाथ की पूजा की गई। पूजा, अभिषेक व प्रभावना का लाभ सुश्रावक विजयचंद, विनोद कुमार, विपुल, विकास, मंजूदेवी नाहटा, सुश्रावक देवेन्द्र, प्रवीण लूणिया परिवार से श्रीमती शकुन्तला देवी, समृद्धि लूणिया ने लिया। आयम्बिल की तपस्वी सुनीता बोथरा, दुग्गड़ का सुगनजी महाराज का उपासरा ट्रस्ट व चातुर्मास व्यवस्था समिति की ओर से अभिनंदन किया गया।
साध्वीश्री मृगावतीजी ने प्रवचन में कहा कि माता-पिता व अभिभावक स्वयं धार्मिक,आध्यात्मिक व संस्कारी बने तथा अपने परिजनों को भी धर्म आध्यात्म के साथ श्रेष्ठ संस्कारों से जोड़े। उन्होंने बताया कि सातवीं शताब्दी में वाराणसी वर्तमान बनारस में धनदेव श्रेष्ठी के यहां जन्में आचार्य मानतुंग सूरि से किसी बात को लेकर राजा भोज नाराज हो गए। उन्होंने आचार्य मानतुंग सूरि को कारागार में भिजवा दिया तथा कारागार के 48 दरवाजों में ताले लगवा दिए। आचार्य मानतुंग सूरि ने भगवान आदिनाथ का अनन्य भक्ति भाव से स्मरण करते हुए भक्तामर स्तोत्र की रचना की। रचना की एक-एक गाथा के साथ मानतुंगाचार्यजी की बेड़िया व कारागार के सभी ताले तथा कर्मों की बेड़िया टूट गई। वे मांनतुंगाचार्य भक्त से भगवान बन गए। उन्होंने बताया कि मानतुंगाचार्यजी द्वारा रचित हर गाथा के संस्कृृत के श्लोक मंत्र के रूप् में मन में शांति, सुख-समृद्धि व वैभव तथा परमात्म भक्ति बढ़ाने वाले बन गए।