टुडे राजस्थान न्यूज़ ( अज़ीज़ भुट्टा )
बीकानेर / भीनासर ,08 अक्टूबर । तेरापंथ भवन भीनासर में रविवारीय विशेष प्रवचन मे सेवा के महत्त्व को उजागर करते हुए मुनि-चैतन्यकुमार “अमन ने धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा भारतीय परम्परा मे सेवा को सर्वोपरि माना गया है। एक व्यक्ति ज्ञानी ध्यानी प्रवचनकार साहित्यकार, तपस्वी, मौनी है किन्तु इन सबसे बढ़कर सेवाभावी को महत्त्व दिया गया है। सेवा वह जो दूसरे के मन को शान्ति समाधिदें। सेवा केवल शारीरिक ही नही होती वह मानसिक भावनात्मक आध्यात्मिक सामाजिक व राष्ट्र की भी होती है। समर्पित भाव से अनासक्त और निस्वार्थ भाव से की गई सेवा का विशेष महत्त्व होता है।
मुनि अमन ने कहा – सेवा छोटी या बड़ी नहीं होती. सेवा सेवा ही होती है। आज के युग मे अपने माता पिता की सेवा करने वाले विरले ही होते है। सेवाधर्म को गहन माना गया है। सेवा के साथ में किसी प्रकार की शर्त नही होनी चाहिए जहां सेवा के शर्त जुड़ जाती है वहाँ स्वार्थ भावना जुड् जाती है। मां पिता जो जन्म देते है, संस्कारवान बनाते है और उसे पढ़ा-लिखाकर योग्य बना देते है तो पुत्र का भी फर्ज- कर्तव्य होता है कि वह समय आने पर उनकी सेवा करें तथा उन्हें मानसिक शान्ति-समाधि देने का प्रयत्न करे। तभी अपने माता पिता के ऋण से उऋण बन सकता है।इस अवसर पर मुनि प्रबोध कुमार जी ने कर्मों का विवेचन करते हुए अपने विचार प्रस्तुत किए। आगामी रविवार से नवरात्र के अवसर पर मुनि अमन के पावन सान्निध्य में आध्यात्मिक अनुष्ठान प्रारंभ होगा ।जो पूरे नवरात्र में नियमित रूप से चल सकेगा ।
इस अवसर पर ज्ञानशाला के ज्ञानार्थीयों को मुनि अमन ने प्रशिक्षण देते हुए कहा- प्रत्येक ज्ञानार्थी को अपने ज्ञान का विकास करना चाहिए ।धार्मिक व अध्यात्म ज्ञान से ज्ञानार्थी अपना मार्ग प्रशस्त कर सकता है।वर्तमान में आचार्य महाश्रमणजी ज्ञानशाला के प्रति बहुत जागरूक है तथा समय समय पर बोधपाठ देते रहते है। ज्ञानशाला प्रशिक्षिका पिंकी कोचर, रितिका बच्चा,सम्पत बोथरा, श्वेता बोथरा ने ज्ञानार्थी बालक बालिकाओं को प्रशिक्षण दिया ।