“उड़ान” प्रशिक्षण शिविर में बेटियाँ हुई आत्मनिर्भर

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टुडे राजस्थान न्यूज़ (अज़ीज़ भुट्टा )

“उड़ान” के पंखों से बेटियाँ बनीं आत्मनिर्भर

“उड़ान” ग्रीष्मकालीन निशुल्क अभिरुचि प्रशिक्षण शिविर का हुआ समापन

पत्रकार रहीस खान का अभिनव प्रयास, 9 वर्षों से बेटियों को नि:शुल्क दे रहे हुनर की सीख

सीकर, 29 जून। बेटियाँ अब सिर्फ सपने नहीं देख रहीं, बल्कि उन्हें साकार करने के लिए निडर होकर आगे बढ़ रही हैं। इस बदलाव के पीछे कई लोगों की मेहनत होती है। ऐसा ही एक नाम है रहीस खान, जो पेशे से पत्रकार हैं, लेकिन दिल से एक जमीनी सामाजिक कार्यकर्ता।

रहीस खान ने बेटियों को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से “उड़ान” नामक ग्रीष्मकालीन निशुल्क अभिरुचि प्रशिक्षण शिविर की शुरुआत की, जो पिछले 9 वर्षों से लगातार चल रहा है।

हुनर के साथ आत्मनिर्भरता की उड़ान

“उड़ान” शिविर में बेटियों को व्यावसायिक और रचनात्मक हुनर सिखाया जाता है। इनमें शामिल हैं:

सिलाई-कढ़ाई, ब्यूटी पार्लर का प्रशिक्षण, कंप्यूटर संचालन , पेंटिंग व क्राफ्ट, मेहंदी डिज़ाइन, व्यक्तित्व विकास और संवाद कौशल।

इस शिविर के जरिए बेटियाँ न केवल आत्मनिर्भर बन रही हैं बल्कि अपने परिवार की आर्थिक रूप से भी मदद कर पा रही हैं। रहीस खान का कहना है, “सिर्फ शिक्षा ही नहीं, हुनर भी जरूरी है। हुनर के दम पर बेटियाँ अपने सपनों को सच कर सकती हैं।”

सिर्फ बेटियों के लिए नहीं, समाज और पर्यावरण के लिए भी प्रतिबद्ध

रहीस खान का सामाजिक कार्य सिर्फ बेटियों के हुनर तक सीमित नहीं है। वे लगातार “पेड़ लगाओ – जीवन बचाओ” अभियान भी चला रहे हैं। विभिन्न सार्वजनिक स्थानों, स्कूलों, पार्कों और मोहल्लों में पौधारोपण कर पर्यावरण बचाने की मुहिम में जुटे हैं।

साथ ही, वह जरूरतमंदों को खाद्य सामग्री वितरित करते हैं, महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ते हैं, शिक्षा और स्वास्थ्य जागरूकता अभियान चलाते हैं, समय-समय पर रक्तदान और स्वास्थ्य जांच शिविर भी आयोजित करते हैं।

“समाज सेवा मेरा धर्म है” – रहीस खान

रहीस खान कहते हैं, “जब समाज ने मुझे पहचान दी, तो समाज के लिए कुछ करना मेरा फर्ज बनता है। बेटियों को हुनर देना और पर्यावरण को बचाना, यही मेरी जिंदगी का मकसद है।”

समाज में बढ़ रहा सम्मान

रहीस खान के इस प्रयास की चारों ओर सराहना हो रही है। जिन बेटियों ने “उड़ान” शिविर से प्रशिक्षण लिया है, वे आज आत्मनिर्भर हैं और दूसरों के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं। स्थानीय लोग कहते हैं कि “अगर हर मोहल्ले में एक रहीस खान हो जाए तो समाज में बदलाव निश्चित है।


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