सामयिक में शुद्धता, दया करुणा भाव रखें-साध्वीश्री मृृगावती। बीकानेर, 14 जुलाई। जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ की मनोहरश्रीजी म.सा की सुशिष्या साध्वीश्री मृृगावतीश्रीजी म.सा., बीकानेर मूल की साध्वीश्री सुरप्रियाश्रीजीम.सा व नित्योदया श्रीजी म.सा के सान्निध्य में रांगड़ी चैक के सुगनजी महाराज के उपासरे में शुक्रवार से 30 दिवसीय सौभाग्य कल्पवृृक्ष तप, बच्चों का धर्म, ध्यान एवं ज्ञान शिविर शुरू होगा। बच्चों का शिविर दोपहर दो से तीन बजे तक रांगड़ी चैक के सुगनजी महाराज के उपासरे में शुरू होगा। रविवार को दीपक एकासना का आयोजन रखा गया है।
सुगनजी महाराज के उपासरे में गुरुवार को साध्वीश्री मृगावती जी.मसा. व नित्योदयाश्रीजी म.सा.ने कहा कि जैन धर्म में सामायिक आत्म साधना का प्रमुख माध्यम है। सामायिक हमंें सम व समता भाव में रहने का संदेश देती है। समता भाव में रहने वाला ही महान बन सकता है। सामयिक में राग-द्वेष से परे शुद्ध, मैत्री, जीव मात्र के प्रति वात्सल्य व दया भाव होने चाहिए।
सामयिक का उत्तम व आत्म भाव भव सागर से श्रावक-श्राविकाओं को पार लगा देता है। श्रावक-श्राविका, साधु-साध्वीवृृंद को प्रतिदिन 48 मिनट की सामायिक साधना शुद्ध भाव तथा प्राणीमात्र के प्रति दया, अहिंसा व करुणा का भाव रखते हुए करनी चाहिए। सामायिक ग्रहण करने के 9 सूत्र होते हैं, प्रत्येक सूत्रों को बोलकर मन,वचन और काया से 32 दोषों को टाला जाता है। मन, वचन के 10-10 व काया के 12 दोष माने गए है। सामायिक का ’’सा’’ शब्द सामयिक ज्ञान,दर्शन व चारित्र की साधना करने का, ’’मा’’ परमात्मा की माला जपने का, ’’य’’ जैना की यतना करने तथा ’’क’’ प्राणी मात्र के प्रति करुणा के भाव रखने का संदेश देता है। सामायिक के 48 मिनट से अधिक व्यक्ति मन,वचन व कर्म से स्थिर नहीं रह सकता, इसलिए गुरु भगवन्तों ने यह समय निर्धारित किया है। उन्होंने कहा कि सभी प्राणी अपने आत्मा के मालिक है, शरीर के प्रबंधक मन को नियंत्रित करें तथा अपनी आत्मा की प्रतीति करते हुए सामायिक की साधना करें। सामायिक कि साधना का लक्ष्य आत्मा को लक्ष्य बनाकर, अपने अंतर जगत को जागृृत करते हुए करनी चाहिए।