सुलगते सवाल
संदर्भ -मुख्यमंत्री की बीकानेर यात्रा पर एक कार्यकर्ता की पाती
तेरी रहनुमाई का सवाल है
– मोहम्मद फारूक
तुम मुखातिब भी हो करीब भी हो तुमको देखें के तुमसे बात करें
बीकानेर 15 जुलाई । अपने महबूब से मुद्दतों बाद मुलाकात पर इस तरह की कैफियत तारी हो ही जाती है हां आप भी हमारे महबूब हो मगर बीकानेर तशरीफ़ आवरी पर भी ना तो आप हम से मुखातिब होंगे और ना ही हम आपसे बात कर पाएंगे ।महबूब से शिकायत करना और अधिकार से करना कतई गलत नही होता । इसलिए सोचा मीडिया के जरिए मैं अपने लोगों के दिल की पीड़ा ,उनके विचार और दिली जज्बात की एक सौगात आपको और नगर प्रतिनिधि को पेश करूं
तू हमें प्यारा है सौ जान से प्यारा लेकिन हमारी तकदीर ना बन ,खुद को मुकद्दर ना बना ।
अपनी वफाओं का सिला मांगने का मैं व्यक्तिगत तौर पर पक्षधर नहीं हूं लेकिन हमारे लोग जिस जोश जुनून और जज्बात के साथ कांग्रेस के लिए काम करते हैं वक्त पड़ने पर बड़े-बड़े जुल्मों सितम भी बर्दाश्त करते हैं ।बाज औकात तो कांग्रेस का साथ देने की कीमत भी चुकानी पड़ती है मगर इस वक्त इनकी वफाओं के मद्देनजर कांग्रेस को दरियादिली का सबूत देने की बजाय कांग्रेस नजरें चुराती नजर आ रही है । मेरे शहर में आपने बड़े-बड़े ओहदे नवाजे । मगर मेरे लोगों की शिकायत है की
ओरारे खेत में बिरखा ही बिरखा म्हारे खेत में छांट न छिड़का ।
यह हकीकत है के आप इस वक्त के जिल्ले इलाही हो और वक्त के जिल्ले इलाही से फरियाद है कि
हम भी हकदार हैं गुलशन में बहारे नो के
गैर की तरह बागबा हमें आवाज ना दे
क्या क्या ना किया कांग्रेस के लिए धरने दिए, प्रदर्शन किए, पुतले फूंके, सरकार से टकराए ,काले झंडे दिखाए ,जुलूस निकाले ,ज्ञापन दिए और यहां तक कि हमारी बहनों ने भी कांग्रेस के लिए बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और अपनी चूड़ियां अफसरों को शर्मिंदा करने के लिए उतार कर रख दी ।कांग्रेस को अपना घर समझा ,लाठियां खाई और जेल तक की यात्रा की ।
क्या हमारी वफाओं का इम्तहान अभी भी बाकी है
ताकतें तुम्हारी है और खुदा हमारा है
अक्श पर ना इतराओ आईना हमारा है।
ना गर्मी सर्दी देखी ना धूप और तपिश की परवाह की और ना ही आंधी बारिश और तूफानों से डरे कांग्रेस के लिए शहर शहर वार्ड गलियां कूचे, कच्ची बस्तियां झोपड़ियां ,शहर तो क्या गांव ढाणी और सहरा को भी ना छोड़ा हमने फिर भी वफादार नही ।क्या बीकानेर के हमारे लोगों में कोई भी शख्स आपकी नजरों में इस अहल नहीं जिसको सरकार में मुनासिब और वाजिब मान सम्मान से नवाजा जा सके , श्रीमान सावन में भी हमारे लोगों में तपिश का अहसास है। “सरकार जरा गौर करो , होश में आओ” आप तो पैराटीचर से भी वादा करके भूल गए
यह निर्णय लेने में इतनी ताखीर कैसी। कैसा डर?अगर आप कांटों से डरते हैं तो गुलाब की चाहत नहीं रखनी चाहिए आखिर में इन अशआर के साथ आम जज्बात पर लगाम दूंगा
आप की गुलामी का बोझ हम ना ढोएंगे आबरू से मरने का फैसला हमारा है
अपनी रहनुमाई पर अब गुरुर मत करना आपसे बहुत आगे नक्शे पा हमारा है।
मोहम्मद फारुख