बीकानेर-28 अगस्त। पर्यटन लेखक संघ-महफिले अदब के साप्ताहिक अदबी कार्यक्रम की 543 वीं कड़ी में रविवार को होटल मरुधर हेरिटेज में तरही मुशायरा-2 का आयोजन रखा गया जिसमें शहर के शाइरों ने दाग दहलवी के मिसरे “भेष बदले रात को आये थे किसके घर से आप” पर कलाम पेश किए।
सदारत करते हुए वरिष्ठ शाइर ज़ाकिर अदीब ने आईना दिखाने वाले शे’र सुना कर दाद हासिल की-
आईने का सामना करना पड़ेगा आख़िरश
मुंह छुपा लेते हैं अक्सर आईने के डर से आप
मुख्य अतिथि इंजी निर्मल कुमार शर्मा ने संस्कार की बात कही-
बदनाम गलियों से गई देखी है आदत आपकी
आदतें बदलो ज़रा सोचो कि हो किस घर से आप
संयोजक डा ज़िया उल हसन क़ादरी ने शर्मो हया का संदेश दिया-
लाज़मी हर शख्स को चादर हया की है “ज़िया”
पांव बाहर मत निकालो अपनी इस चादर से आप
असद अली असद ने की ग़ज़ल भी सराही गई-
ऐ “असद” इसका नतीजा भी पता है आपको
दोस्ती जो कर रहे हो किस क़दर ख़ंजर से आप
मौलाना अब्दुल वाहिद अशरफी ने मौसमों की बात रखी-
बेख़बर हैं मौसमों की धूप के तेवर से आप
मशविरा है ये मेरा तन्हा ना निकलें घर से आप
इरशाद अज़ीज़ ने “मेरा क़ातिल कौन है पूछें ज़रा ख़ंजर से आप”, वली मुहम्मद गौरी वली रज़वी ने “आपका ये जिस्मे-नाज़ुक कांच की मानिंद है”, सागर सिद्दीकी ने “सरबुलन्दी का सबक़ हमको सिखाया आपने”, इमदाद उल्लाह बासित ने “इक ज़रा पर्दा हटा दो अब रूखे-अनवर से आप”,अमित गोस्वामी ने “और हैं बाहर से कुछ,कुछ और हैं अंदर से आप”, राजेन्द्र स्वर्णकार ने “आप तो राजेन्द्रजी पहले कभी ऐसे न थे”, अब्दुल जब्बार जज़्बी ने “सातवें अम्बर से आप”, क़ासिम बीकानेरी ने”आसमाँ के चंद तारे साथ रहते हैं सभी”, शकील अंसारी ने “क्यूँ नहीं लेते सबक़ फ़िरऔन के लश्कर से आप”,इस्हाक़ गौरी शफ़क़ ने “जीतिए दुनिया को फिर अख़लाक़ से ज़ेवर से आप”,मुईमुद्दीन मुईन व शारदा भारद्वाज ने उम्दा कलाम सुना कर तरही मुशायरे को बलन्दी पर पहुंचाया।सञ्चालन डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने किया।