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बीकानेर, 14 अक्टूबर। वंदन करता जीव व्यवहार कुशलता की प्राप्ति करता है। यह उतराध्ययन सूत्र के 29 वें अध्याय में प्रभुु महावीर ने बताया है। जीवन में हर व्यक्ति सफलता चाहता है, कामयाबी चाहता है। लेकिन केवल चाहने से यह हासिल नहीं होती। सफलता प्राप्ती के लिए व्यवहार कुशलता अनिवार्य है। श्री शान्त – क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में नित्य प्रवचन के दौरान शुक्रवार को यह सद्विचार व्यक्त किए। महाराज साहब ने कहा कि व्यक्ति चाहे जितना धनवान बन जाए, ऐश्वर्य प्राप्त कर ले, लेकिन अगर व्यवहार कुशल नहीं है तो सब है। कुशल व्यक्ति ही लोकप्रियता को, प्रसिद्धी को हासिल करता है और यह व्यवहार कुशलता अनुभव से प्राप्त होती है। हम दूसरों के आचरण और व्यवहार को देखकर उनसे सीखकर स्वयं कुशलता पा सकते हैं। महाराज साहब ने बताया कि एक बार अकबर ने बीरबल से पूछा कि तुम्हारे बुद्धिमता का क्या कारण है। इस पर बीरबल ने जवाब दिया, जहांपनाह मेरी बुद्धी का कारण मूर्खों की मूर्खता है। उन्हें देखकर में सावधान रहता हूं। व्यवहार कुशलता व्यक्ति का पहला गुण होना चाहिए और यह वंदना से हासिल होती है। वंदना हमें विनम्र बनाती है, जीव दक्ष होता है। श्रावक के 21 गुणों में एक गुण सुदक्ष होना है। अगर श्रावक व्यवहार कुशल नहीं है तो वह चाहे जितनी सामायिक करले, ज्ञान-ध्यान करले लोकप्रिय नहीं बन सकता।
पुण्य वक्त पर काम आता
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने फरमाया कि पुण्य जरूरी नहीं कि आज किया है तो आज ही काम आ जाए,। यह कभी भी काम आ सकता है, आज भी काम आ सकता है और कल भी काम आ सकता है। भगवान महावीर ने कहा है कि हर आत्मा महात्मा बन सकती है और महात्मा परमात्मा बन सकता है। परमात्मा से बड़ा संसार में कोई नहीं है और परमात्मा बनने के लिए जरूरी है, वंदन करना। वंदन संसार में लोकप्रियता का सबसे बड़ा भाव है।
नसीब से मिलता संतों का सानिध्य
आचार्य श्री ने कहा कि जैन संतों का संगत मिले तो श्रावक ज्ञान, दर्शन, विवेक प्राप्त कर सकते हेैं। इसलिए स्थानक में आने की आदत डालें, यह नहीं कि महाराज साहब गए तो अब क्या जरूरत है, स्थानक में स्वाध्याय, ज्ञान-ध्यान की चर्चा होती है। संत -सतीयां ज्ञान की बात करते हैं। जिनवाणी और संतों का सानिध्य नसीब से मिलता है। इसलिए जितना हो सके स्थानक को समय देने का प्रयास करें।
दिल से सुनें, संतों का प्रवचन
महाराज साहब ने फरमाया कि संतों का प्रवचन दिल से सुनागे तो दिल में उतरेगा, दिल में उतरा तो जीवन में उतर जाएगा। दिमाग से सुना दिमाग तक ही रहेगा और कानों से सुना तो इस कान से सुनकर उस कान से निकल जाएगा। इसलिए सत्संग का, धर्मसभा का, प्रवचन का नित्य लाभ लेना चाहिए। अपने से बड़ों को वंदन करना चाहिए, इससे सबकुछ मिलता है। महाराज साहब ने भजन पल-पल उम्र बीती जावे रे, चेतन्या तू गीत प्रभु के क्यों नहीं गावे रे.., दुर्लभ नर का चौला पाया, क्यों विषयों में भटके सुनाकर भवार्थ समझाया।